बैंक मैनेजर बहू की मौत पर सास को 82.12 लाख मुआवजा, कोर्ट ने सास को माना बहू का नॉमिनी, बेटे-बहू की मौत पर 1.31 करोड़ मुआवजा का निर्देश, पढ़िये खास फैसला

इंदौर। ऐसा कम ही होता है, जब बहू की मौत का मुआवजा सास को दिया जाये। लेकिन, इंदौर में कोर्ट ने हैरान करने वाला फैसला सुनाया है। कोर्ट ने बैंक मैनेजर बहू की मौत पर सास को 82 लाख रूपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। इस हादसे में बहू और बेटे दोनों की मौत हुई है। कोर्ट ने दोनों की मौत पर कुल 1.31 करोड़ की राशि इंश्योरेंस कंपनी को देने का आदेश दिया है, जिसमें से 82 लाख रूपये बहू की मौत का मुआवजा और 49.86 लाख बेटे की मौत का मुआवजा शामिल है।

कोर्ट ने बहू की मौत पर मायके वालों के बजाय सास को इसलिए मुआवजा देने का आदेश दिया कि क्योंकि बहू की असमय मौत से सास उससे प्यार, स्नेह, मार्गदर्शन और भरण पोषण पाने से वंचित रह गयी। लिहाजा स्थानीय कोर्ट ने बहू की मौत के बाद मिलने वाली मुआवजा राशि को मायके के बजाय सास को देने का आदेश दिया है। आमतौर पर सास को बहू का नॉमिनी नहीं माना जाता, लेकिन इस केस में ऐसा हुआ है। इतनी बड़ी मुआवजा राशि के पीछे भी कोर्ट में लंबी बहस चली और सात साल बाद 25 अगस्त को फैसला आया।

बेटा आयुष दीक्षित जहां व्यापार के साथ सेल्स एग्जीक्यूटिव भी था तो बहू श्वेता दीक्षित पंजाब नेशनल बैंक में मैनेजर के पद पर थी। मुआवजा राशि नेशनल इंश्योरेंस कंपनी बुजुर्ग सास के खाते में जमा करेगी। सास मालती देवी के साथ ही बहू श्वेता और बेटा आयुष इंदौर के स्कीम 94 में रहते थे। 16 नवंबर 2016 की रात करीब 1.30 बजे होटल से खाना खाकर लौट रहे थे। तेज रफ्तार कार बॉम्बे हॉस्पिटल चौराहे के पास खड़े कंटेनर में घुस गई। दोनों की मौत हो गई।

आयुष और श्वेता दीक्षित की शादी तीन साल पहले हुई थी। उनकी संतान नहीं थी। फरियादी पक्ष ने सेल्स एग्जीक्यूटिव आयुष की मौत के एवज में 1.10 करोड़ रुपए और बैंक मैनेजर पत्नी श्वेता की मौत के मामले में 1.20 करोड़ रुपए का क्लेम मांगा गया था। इसके पीछे तर्क दिए गए।

जिस कंटेनर के कारण दुर्घटना हुई थी उसे लेकर दोनों पक्षों की ओर से कोर्ट में जमकर बहस हुई। आयुष की ओर एडवोकेट ने दावा किया कि कंटेनर ड्राइवर की गलती थी। उसने बिना इंडीकेटर और बैक लाइट जलाए लापरवाही से कंटेनर खड़ा किया था। इस कारण आयुष की कार टकरा गई। कंटेनर मालिक की ओर से इंश्योरेंस कंपनी के एडवोकेट ने तर्क दिया कि कंटेनर साइड में ही खड़ा था।

आयुष काफी तेज रफ्तार और लापरवाही से कार चला रहा था। घटना के समय कार की लाइट चालू थी। चौराहे की सारी लाइट्स जल रही थी। ऐसे में पीछे से टकराने पर कंटेनर ड्राइवर की कोई गलती नहीं है। चूंकि केस की सुनवाई के दौरान ही ससुर चल बसे इसलिए पूरी राशि सास के खाते में जमा करने के आदेश दिए गए हैं।

मुआवजा को इस तरह से निर्धारित किया गया
आयुष दीक्षित की कन्नौद में पतंजलि की दुकान थी, इससे उसे 3 लाख रुपये सलाना कमाता था, वहीं वो कंपनी में सेल्स एक्जीक्यूटिव भी था, जिससे उसे 45 हजार रुपये प्रतिमाह मिलता था। अगर उसकी मौत नहीं होती, तो उससे ज्यादा कमाता। वहीं श्वेता दीक्षित पंजाब नेशनल बैंक में मैनेजर थी। उसकी सैलरी 60 हजार रुपये प्रतिमाह थी, बैंक की ओर से उसे गृहभाड़ा भत्ता मिलता था। प्रमोशन, इंक्रीमेंट व अन्य सुविधा भी मिलती थी, लेकिन दुर्घटना की वजह से वो सभी लाभों से वंचित रह गयी। कोर्ट ने बहु श्वेता को 59.48 लाख मुआवजा, और छह साल का 22.64 लाख ब्याज सहित कुल 82.12 लाख का मुआवजा देने का निर्देश दियाहै, जिसमें से 19.48 लाख FD के रूप जमा होंगे। वहीं बेटे आयुष के लिए मुआवजा 36.11 लाख मुआवजा। छह साल का ब्याज 13.74 लाख रुपये सहित कुल 48,86 लाख रूपये देने का निर्देश दिया, इसमें से 20 लाख रुपये एफडी में जमा होंगे।

HPBL Desk
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