‘लिव-इन पार्टनर पर महिला रेप का आरोप नहीं लगा सकती’, हाईकोर्ट ने की कड़ी टिप्पणी, रेप की FIR को कोर्ट ने किया रद्द
नयी दिल्ली। आपसी सहमति से बने शारीरिक संबंध से जुड़े दुष्कर्म के मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि एक शादीशुदा पीड़िता शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने का दावा नहीं कर सकती है। दिल्ली हाईकोर्ट ने विवाहित महिला के खिलाफ उसके लिव-इन पार्टनर द्वारा बलात्कार के मामले को रद्द कर दिया।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने आदेश में कहा कि इस केस में दो व्यक्ति शामिल थे। जो कानूनी रूप से एक-दूसरे से शादी करने के लिए अयोग्य थे, लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप में साथ रह रहे थे। भारतीय दंड संहिता की धाारा 356 के तहत दी गई सुरक्षा ऐसी पीड़िता को नहीं दी जा सकती है।
जस्टिस शर्मा ने कहा कि सहमति से अलग-अलग लोगों से शादी करने वाले दो वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप को आपराधिक अपराध नहीं बनाया गया है। लोगों को अपनी पसंद तय करने का अधिकार है। चाहे वह पुरुष हो या महिला। लेकिन दोनों को ऐसे रिश्तों के दुष्परिणामों को लेकर अलर्ट रहना चाहिए।
अदालत ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप के कई मामलों में दोनों पक्ष अविवाहित हो सकते हैं या उनमें से कोई एक विवाहित हो सकता है या दोनों विवाहित हो सकते हैं। इस मामले में दो लोग लिव-इन रिलेशनशिप समझौते के तहत एक साथ रह रहे थे और भारतीय दंड संहिता की धारा-356 के तहत दी गई सुरक्षा ऐसी पीड़िता को नहीं दी जा सकती।
अदालत ने कहा कि सहमति से अलग-अलग साझेदारों से विवाह करने वाले दो विवाहित वयस्कों के बीच लिव-इन संबंध को आपराधिक नहीं बनाया गया है। अदालत ने कहा कि पक्षकारों को अपनी पसंद निर्धारित करने का अधिकार है और दाेनों को ऐसे रिश्ते के परिणाम के प्रति सचेत रहना चाहिए।