आज सावन का तीसरा सोमवार : जानें 12 ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्व, इसकी तीर्थयात्रा करते समय अगर मृत्यु हुई तो सीधे मोक्ष

Update: 2024-08-05 04:23 GMT

उत्तराखंड। सावन का पवित्र महीना चल रहा है। देश और दुनिया भर के शिवभक्त शिव भक्ति में लीन होकर उनकी आराधना में डूबे हुए है। देश भर में मौजूद शिव मंदिरों और ज्योतिर्लिंगों में शिव भक्ति को भारी भीड़ देखने को मिल रही है। सभी भक्त भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर उनसे अपने मन की मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना कर रहे है। इसी तरह की भक्तों की भीड़ केदारनाथ मंदिर में भी देखने को मिल रही थी। हालांकि, मौसम खराब होने की वजह से केदारनाथ यात्रा रोक दी गई है। लेकिन बावजूद इसके भक्त लगातार बाबा के दर्शन को आतुर दिखाई दे रहे हैं।

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बता दें कि, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक जिसे केदारेश्वर भी कहा जाता है। यह तीर्थ स्थल चार धामों में से एक है। यह उत्तराखंड राज्य में स्थित है। इसके पश्चिम की ओर मन्दाकिनी नदी बहती है।

इतिहास एवं कथा

भगवान ब्रह्मा के पुत्र धर्म और उसकी पत्नी मूर्ति के दो पुत्र हुए थे। जिनका नाम नर और नारायण था। इन्हीं नर और नारायण ने द्वापर युग में श्री कृष्ण और अर्जुन का अवतार लिया था और धर्म की स्थापना की थी। श्री भगवद्गीता के चौथे अध्याय के पांचवे श्लोक में आप इस बात की पुष्टि कर सकते हैं। ये दोनों ही पुत्र नर और नारायण बद्रीवन में स्वयं के द्वारा बनाये गए पार्थिव शिवलिंग के सम्मुख घोर तप किया करते थे। शिव जी उन दोनों बालक से प्रसन्न होकर उनके द्वारा बनाये गए शिवलिंग में प्रतिदिन समाहित हुआ करते थे। नर और नारायण की इस घोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी वहां प्रकट हुए। ऐसा देखकर दोनों बहुत प्रसन्न हुए। शिव जी ने उन बालकों से कहा कि मैं तुम दोनों की तपस्या से अति प्रसन्न हूँ। जो भी वर माँगना चाहते हो मांग सकते हो। तब दोनों बालकों ने भगवान शिवजी से विनती की, कि हे प्रभु! आप तीनों लोकों का कल्याण करने वाले हैं अर्थात् हम सभी के कल्याण हेतु आप यहाँ सदा के लिए लिंग रूप में विराजमान हो जाईए। आज उसी बद्रीनाथ स्थान पर शिवजी साक्षात् विद्यमान हैं। वहां दो पहाड़ भी हैं जिनका नाम नर और नारायण है। ऐसा माना जाता है कि केदारनाथ की तीर्थयात्रा करते…समय यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह मंदिर वास्तुकला पर आधारित है।

ऐसी मान्यता है कि यदि आप केवल बद्रीनाथ की यात्रा पर जाते हैं और केदारनाथ के दर्शन किये बिना वापस आ जाते हैं तो आपकी यात्रा अधूरी रहती है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के साथ-साथ नर और नारायण के दर्शन करना भी जरूरी है। सतयुग में उपमन्यु ने यहाँ भगवान शिव की आराधना की थी। मंदिर के अंदर पहले हॉल में पांच पांडव, कृष्ण भगवान, शिव भगवान का वाहन नंदी, वीरभद्र शिवजी का संरक्षक, द्रौपदी और कई देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। इस तीर्थस्थल की यात्रा करना थोड़ा कठिन है क्योंकि ये पहाड़ों से घिरा हुआ है और मौसम भी कभी- कभी प्रतिकूल हो जाता है। 2013 में इस क्षेत्र में बाढ़ आने की वजह से यह क्षेत्र प्रभावित हुआ था। लेकिन मंदिर के अंदर का हिस्सा व मूर्ति सुरक्षित थीं। यह तीर्थस्थल अपने आप में ही एक अद्भुत स्थान है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही भक्तगणों के संकट दूर हो जाते हैं। गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग।

केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड । न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है यहां- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी। इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी के किनारे है केदारेश्वर धाम है। यहां सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी रहता है।

भीम शीला की कहानी

16 जून 2013 उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ ने हर जगह तबाही मचा दी थी, ऊंचाई पर स्थित एक भी जगह ऐसी नहीं थी जो बाढ़ की चपेट में न आई हो। भयंकर बाढ़ की वजह से केदारनाथ में भी हाहाकार वाला मंजर देखना पड़ा था। कहते हैं केदारनाथ मंदिर से 5 किमी ऊपर चौराबड़ी ग्लेशियर के पास मौजूद एक झील बन गई थी, जिसके टूटते ही उसका सारा पानी नीचे की ओर आ गया था। ये बिल्कुल जल प्रलय जैसा नजारा था।

यहां के यात्रियों का कहना था कि 16 जून की शाम को उन्होंने अचानक मंदिर के पीछे ऊपर वाले पहाड़ी भाग से पानी का तेज बहाव आते हुए देखा। इसके बाद तीर्थयात्रियों ने मंदिर में शरण लेना सही समझा। चलिए जानते हैं कैसे शिला ने मंदिर को बचाया।

मंदिर के पीछे आ रुकी बड़ी चट्टान -

पानी, रेत, चट्टान और मिट्टी का सैलाब ने केदार घाटी को उजाड़कर रख दिया था। पहाड़ों में धंसी बड़ी-बड़ी मजबूत चट्टानें भी टूटकर पत्थर की तरह गिरने लगी। सैलाब के सामने जब कोई नहीं टिक पा रहा था, ऐसे में मंदिर पर भी खतरा मंडरा रहा था। केदारनाथ के लोग और साधुओं की मानें तो मंदिर को किसी चमत्कार ने ही बचाया था। कहते हैं कि पीछे के पहाड़ से बाढ़ के साथ तेज रफ्तार से एक बहुत बड़ी चट्टान भी मंदिर की ओर आ रही थी, लेकिन अचानक वे चट्टान मंदिर के पीछे करीबन 50 फुट की दूरी पर ही रुक गई। लोगों को ऐसा लगा जैसे उसे किसी ने इतनी बड़ी चट्टान को रोक दिया हो।

शिला का नाम ये रखा गया -

चट्टान की मदद से बाढ़ का तेज पानी दो भागों एम् बन गया और मंदिर के दोनों ओर से बहकर निकल गया। उस दौरान मंदिर 300 से 500 लोग ने शरण ली हुई थी। वहां के लोगों के अनुसार चट्टान को जब उन्होंने मंदिर की ओर देखा था तो उनकी रूह कांप गई, लोगों ने वहां भोले बाबा या केदार बाबा का नाम जपना शुरू कर दिया। लेकिन बाबा के चमत्कार से उस चट्टान की मदद से मंदिर भी बच गया और अंदर बैठे लोगों की भी जान बच गई। इस घटना को 10 साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन ये शिला आज भी केदारनाथ के पीछे आदि गुरु शंकराचार्य की समाधी के पास मौजूद है। आज इस शिला को भीम शिला के नाम से जाना जाता है। लोग इस शिला की पूजा करते हैं।

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