Dhanteras Yam Deep Dan : धनतेरस पर दीपदान का हैं विशेष महत्व, जानें....क्यों की जाती हैं यमराज की पूजा
धर्म न्यूज । हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी वाले दिन धनतेरस मनाया जाता है। इस साल धनतेरस 22 अक्टूबर को है। इस दिन भगवान धन्वंतरि भगवान कुबेर और लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही धनतेरस के दिन यमराज की भी पूजा की जाती है। इस यम पूजा के लिए चौमुखा दीपक जलाया जाता है।
धनतेरस के दिन यम के नाम से दीपदान की परंपरा पुराने काल से चली आ रही है। इस दिन यमराज के लिए आटे का चौमुख दीपक बनाकर उसे घर के मुख्य द्वारा पर रखा जाता है। घर की महिलाएं रात के समय इस दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती हैं। इस दीपक का मुख दक्षिण दिशा की ओर होता है। दीपक जलाते समय दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ‘मृत्युनां दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम्’ मंत्र का जाप किया जाता है।
इसलिए करते हैं दीपदान
धनतेरस के दिन यमराज के नाम से दीपदान किया जाता है। इस परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। एक समय यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राण लेते समय किसी पर दयाभाव आया है। तब वे संकोच में आकर बोलते हैं नहीं महाराज। यमराज ने उनसे फिर दुबारा यही सवाल पूछा तो उन्होंने संकोच छोड़ बताया कि एक बार एक ऐसी घटना घटी थी जिससे हमारा हृदय कांप उठा था।
एक बार हेम नामक राजा की पत्नी ने एक पुत्र का जन्म दिया, तो ज्योतिषियों ने नक्षण गणना करके बताया कि जब इस बालक का विवाह होगा, उसके चार दिन बाद ही इसकी मृत्यु हो जाएगी। यह जानकर राजा ने बालक को यमुना तट की गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखकर बड़ा किया। एक बार जब महाराज हंस की युवा बेटी यमुना तट पर घूम रही थी तो उस ब्रह्मचारी बालक ने मोहित होकर उससे गंधर्व विवाह कर लिया। लेकिन विवाह के चौथे दिन ही उस राजकुमार की मौत हो गई। पति की मृत्यु देखकर उसकी पत्नी बिलख-बिलख कर रोने लगी और उस नवविवाहिता का विलाप देखकर हमारा यानि यमदूतों का हृदय कांप उठा। तभी एक यमदूत ने यमराज से पूछा कि ‘क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है?’ यमराज बोले- एक उपाय है। अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को धनतेरस के दिन पूजा करने के साथ ही विधिपूर्वक दीपदान भी करना चाहिए। इसके बाद अकाल मृत्यु का डर नहीं सताता। तभी से धनतेरस पर यमराज के नाम से दीपदान करने की परंपरा चली आ रही है।