क्या इंदिरा गांधी ने दान किया था मंगलसूत्र व जेवर? प्रियंका की बातों की क्या है सच्चाई, जानिये वो कहानी, जब इंदिरा ही नहीं, देश की महिलाओं ने 8 करोड़ कैश और 245 किलो सोना कर दिया था दान

Mangalsutra ki kahani : देश की राजनीति में इन दिनों मंगलसूत्र की खूब चर्चा है। प्रधानमंत्री जहां अपनी चुनावी सभा में इंडी गठबंधन की सरकार आने पर मंगलसूत्र तक छिन लेगी। तो दूसरी तरफ प्रियंका गांधी ने कहा है कि उनकी दादी इंदिरा गांधी ने अपना मंगलसूत्र देश के लिए कुर्बान किया था, नरेंद्र मोदी को मंगलसूत्र की अहमियत का ही पता नहीं है। इधर इंडी गठबंधन के नेता तेजस्वी यादव से लेकर, डिंपल यादव तक मंगल सूत्र को लेकर भाजपा पर निशाना साध रहे हैं। हालांकि जब से प्रियंका गांधी ने दादी के मंगलसूत्र को देश के लिए कुर्बान करने की बात कही है, तभी से लोगों के मन में जानने की उत्सुकता है कि आखिर कब इंदिरा गांधी ने अपने जेवर दान में दिये और वो देश पर कुर्बान करने की बातें क्यों कह रही है। आइये हम आपको बताते हैं कि आखिरकार इंदिरा गांधी ने कब अपने मंगलसूत्र दान में दिये थे।

1962 का युद्ध जब महिलाओं ने देश को दे दिये सारे गहने
प्रियंका की इस बताई बात के लिए हमें आज से 62 साल पहले जाना होगा। 8 सितंबर 1962 को चीनी सैनिकों ने ढोला चौकी को घेरकर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ का प्रयास किया। चीनी सैनिकों को भगाने के लिए भारत के जवानों ने एक अभियान की शुरुआत की, नाम रखा- लेघॉर्न। दो महीने बाद, चीनी सेना ने भारत पर पूरी ताकत से हमला किया। चीन का यह हमला सीधे दोनों देशों के बीच युद्ध में परिवर्तित हो गया। इस युद्ध के शुरू होते ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मदद के लिए भारतीयों की ओर रुख किया, महिलाओं से इस उद्देश्य के लिए अपने गहने देने के लिए कहा। उन्होंने लोगों से पैसे और ऊनी कपड़े दान करने के लिए भी कहा था। अनुमान है कि एन. डी. एफ. को लोगों से करोड़ों रुपये का दान प्राप्त हुआ। इस उद्देश्य के लिए दान करने वाले कई लोगों में से एक नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी थीं। वास्तव में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की वेबसाइट पर डॉ. शशि कुमार सिंह के एक निबंध के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने सभी आभूषण देश को समर्पित किए थे।दुर्भाग्य से भारत के लिए, दान के बावजूद, भारत युद्ध में जीत हासिल करने में असमर्थ रहा। दिलचस्प बात यह है कि ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के प्रतिष्ठित फेलो मनोज जोशी का कहना है कि उस समय भारतीय रक्षा कोष को दान किए गए कई सोने के गहने और आभूषण आज भी भारतीय रिजर्व बैंक के तहखानों में कहीं खो गए हैं।

इंदिरा गांधी ने दान किये थे 336 ग्राम सोना
ये बिल्कुल सच बात है कि इंदिरा गांधी ने अपने गहने देश के लिए दान किये थे। लेकिन ये बात भी सच है कि सिर्फ इंदिरा गांधी ने ही, नहीं बल्कि देश की लाखों महिलाओं ने अपने गहने, सोने की चूड़ियां, मंगलसूत्र देश के लिए दान कर दिये थे। जी हां ये बात 62 साल पुरानी है। वो साल था 1962 का, जब अचानक से देश पर चीन ने हमला कर दिया था। अचानक हुए इस हमले से देश में हड़कंप मच गया था, तब जवाहरलाल नेहरू ने देश से ये आह्वान किया था कि देशवासी मदद करें। वो पैसे, जेवहरात यहां तक की गरम कपड़े से भी जवानों की मदद करें। अगर वो मदद करेंगे, तो देश ये जंग जीत जायेगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका, भारत चीन से ये युद्ध हार गया। सेना को मजबूत करने के लिए पूरा देश कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हुआ था। इसकी पहल इंदिरा गांधी ने की थी। 5 नवंबर, 1962 को उन्होंने अपने सारे गहने सेना को दान कर दिए थे। इनका वजन 336 ग्राम था। उनकी यह मुहिम रंग लाई। घर-घर से लोग निकले। महिलाएं सामने आईं। महिलाएं मंगलसूत्र तक सेना की दानपेटी में डालने के लिए पहुंच गई थीं। महिलाएं अपनी सेना को झुकने नहीं देना चाहती थीं।

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बॉलीवुड के इन कलाकारों ने भी की थी मदद
इंदिरा गांधी की पहल में बॉलीवुड ने भी साथ दिया था। दिलीप कुमार, राज कपूर, मीना कुमारी ने उस समय 50-50 हजार रुपए दान दिया था। 1962 में 20 अक्टूरबर से 19 नवंबर तक चीन से जंग चली थी। चीन ने भारत के पश्चिम में आकसाई चिन और नॉर्थईस्ट् फ्रंटियर एजेंसी या नेफा (अरुणाचल प्रदेश) में धावा बोल दिया था। उस वक्त सेना इस युद्ध के लिए तैयार नहीं थी। भारतीय सेना ने कभी सोचा भी नहीं था कि चीन उस पर हमला करेगा।

8 करोड़ कैश और 252 किलो सोना लोगों ने किया था दान
इंदिरा गांधी के नेशनल डिफेंड फंड को अपने गहने दान देने की खबर जैसे ही देश में फैली, कई महिलाओं ने अपने जेवर-गहने उतार दिये और देश के लिए दान तिया। 8 करोड़ कैश और 252 किलो सोना कुछ ही दिन में देश के लिए इकट्ठा हो गया। 8 करोड़ कैश के अलावे 252 किलोग्राम सोना की कीमत आज के वक्त में देखें तो इसकी कीमत लगभग 190 करोड़ होती है। ये बात अलग है कि उन करोड़ों रुपये और गहनों का क्या हुआ, इसकी जानकारी कभी भी देश को नहीं दी गयी। हालांकि कई बार इसकी मांग भी उठी, लेकिन इस पर तत्कालीन सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया।

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