क्या आप बीमार हैं तो अस्पताल न जाएं ? क्योंकि डाक्टर बाबू हड़ताल पर हैं…..

रांची । जी हां …… ये बिलकुल सच है कि यदि आप बीमार हैं तो अस्पताल बिल्कुल भी ना जाएं, क्योंकि डॉक्टर बाबू हड़ताल पर हैं। सरकार ने नए नए कानून बनाकर स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे अधिकारों को मूलभूत सुविधाओं की श्रेणी में तो रख दिया परंतु सरकार कितनी संवेदनशील है और इन सुविधाओं को आम जनता तक पहुंचाने के प्रति कितना गंभीर है ? इसका ताजा उदाहरण ये देखकर पता लगाया जा सकता है की सरकार को अपनी मांगों से अवगत कराने के बावजूद सरकार चेतती नहीं। आज आपको इस विषय पर आत्म मंथन करना पड़ेगा कि क्या सरकार वास्तव में संवेदनशील है ? यदि संवेदनशील है तो हड़ताल जैसे हालात पैदा ही होने क्यों देती हैं और यदि संवेदनशील नहीं है तो फिर आखिर यह लोकतंत्र की चुनी सरकार का मतलब क्या है ? जहां न तो लोगों को सुविधाएं मयस्सर हो पाती है और ना तो ऐसे कानून का फायदा मिल पाता है ।यह वास्तव में विश्लेषण का विषय है।

1 मार्च कार्य बहिष्कार की है घोषणा

राज्यभर के चिकित्सकों ने पिछले 15 दिनों में अलग-अलग घटनाओं में चिकित्सकों पर हो रहे हमले का हवाला देकर 1 मार्च को कार्य बहिष्कार की घोषणा कर दी है।इसके पूर्व में भी चिकित्सकों का संगठन IMA और JHSA के द्वारा इस बातों से रूबरू कराया गया था की चिकित्सक संवर्ग नाराज चल रहे हैं। जितनी जल्दी हो मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट को पास कराया जाए इसके बावजूद सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया और जिसके बाद आज राज्यव्यापी कार्य बहिष्कार की घोषणा कर दी।

पूर्व में उठ चुकी है मांग

ऐसा नहीं है कि मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने की मांग पहली बार उठी है। काफी लंबे अंतराल के बाद भी इस मामले का समाधान नहीं हो सका। ताज्जुब इस बात का लगाया जा सकता है कि मांगों के प्रति न तो सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक पहल की जाती है, ना एसोसिएशन को दिलासा दिया जाता है कि इस मांगों पर सरकार जल्द विचार करेगी जिसके बाद हड़ताल पर जाने की नौबत आ जाती है।

40 दिन की हड़ताल कर चुके है पारा मेडिकल कर्मी

पिछले 16 जनवरी से राज्यभर के अनुबंध पारा मेडिकल कर्मी 25 फरवरी तक हड़ताल पर थे इसके बाद वार्ता के बाद सरकार ने आंदोलन को समाप्त करवाया। सवाल यह नहीं है की कर्मी हड़ताल पर जाते क्यों है ? सवाल यह भी उठता है कि हड़ताल पर जाने से पहले उनकी मांगों पर सरकार अपनी संवेदना क्यों नहीं दिखाती है। इन सभी बातों पर अब सवाल ये उठने लगे हैं क्या वास्तव में सरकार ही हड़ताल होने देना चाहती है ? यदि हड़ताल वार्ता से ही समाप्त किया जाना था तो 40 दिन का वक्त क्यों ?

इन 40 दिनों में हुए परेशानी और गिरती हुई स्वास्थ्य व्यवस्था का जिम्मेदार कौन होगा? इस व्यवस्था को देखने के लिए बड़े-बड़े तनख्वाह वाले अधिकारियों और मंत्री की नियुक्ति की जाती है। इसके बावजूद सरकार हड़ताल पर गए कर्मी और चिकित्सक के सामने आने से भी परहेज करती है

HPBL Desk
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