अनुबंध कर्मियों के चहेते नेता जिन्होंने लिया था नियमितिकरण का फैसला..
Favorite leader of contract workers who had taken the decision of regularization..
Election news। झारखंड में एक बड़ी समस्या अनुबंध कर्मियों की रही है। जो वर्षों से मानदेय पर काम कर रहे है।सरकार से अपनी नियमितिकरण की लगातार मांग के वावजूद आप तक सिर्फ आश्वाशन ही मिल पाया है। ऐसा नहीं है कि हेमंत सोरेन ने चुनावी घोषणा में नियमितिकरण करने की बात नहीं कही थी परंतु 5 साल में सरकार रहने के वावजूद कुछ रास्ता निकालने की कोशिश नहीं की गई।
सबसे दीगर बात ये भी कि विभागीय मंत्री से सबसे ज्यादा जवाबदेही ऐसे प्रस्ताव बनाने में होती है। जब विभागीय मंत्री ही अपने विभाग के कर्मियों के प्रति उदासीन रवैया अपनाएंगे तो बात मंत्रिपरिषद तक पहुंच ही नहीं पाती।
वर्ष 2023 और 2024 में सरकार के खिलाफ आंदोलन का दौर रहा। रांची की धरती कर्मचारी संगठनों के आंदोलन से पटी रही। परंतु दुर्भाग्य इस बात है कि सरकार के विभागीय मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक ने हस्तक्षेप नहीं किया।
कौन हैं चहेते नेता
अनुबंधकर्मियों का मानना है कि प्रदेश में ऐसे विभागीय मंत्री भी हुए जिनकी सोच आज भी उदाहरण बनी हुई है। इन नामों में बेरमो के विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह और संथाल के दिग्गज नेता हेमलाल मुर्मू का नाम जबान पर आता है।
चहेते बनने की वजह
वर्ष 2011 में स्वास्थ्य विभाग के विभागीय मंत्री के रूप में हेमलाल मुर्मू ने विभाग में काम कर रहे अनुबंध पर कार्यरत मेडिकल कर्मी और चिकित्सक को नियमितिकरण करने का फैसला लिया।और इस दिशा में काम किया।ये बात अलग है कि अनुबंध पारा मेडिकल कर्मियों के नियमितिकरण का कार्य अधूरे रहते सरकार गिर गई परंतु चिकित्सक को नियमित कर दिया गया था।
वहीं मजदूर नेता की छवि रखने वाले बेरमो से विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह ने नियमितिकरण के काम की आगे बढ़ाते हुए अपने कार्यकाल में कई विभाग के अनुबंधकर्मियों का नियमितिकरण किया। ऊर्जा विभाग, स्वास्थ्य विभाग, रिम्स जैसे संस्थान का नाम प्रमुख और और अब उदाहरण बन चुके है।
कौन है हेमलाल मुर्मू
वर्तमान में हेमलाल मुर्मू पाकुड़ जिला का लिट्टीपाड़ा क्षेत्र से JMM के टिकट पर चुनाव लड़ रहे है।जहां करीब 44 साल से JMM चुनाव जीत रही है। इस बार भी JMM का पलड़ा भारी है वहीं राजेंद्र प्रसाद सिंह दिवंगत हो गए हैं और फिलहाल उनके पुत्र कुमार जयमंगल सिंह कांग्रेस के टिकट पर बेरमो से चुनाव लड़ रहे है।
अनुबंध कर्मी आज भी इनके कार्यकाल की उदाहरण पेश करती है सरकार से नियमितिकरण की मांग करती रही है। इस विधानसभा चुनाव में अनुबंध कर्मी फिर ऐसे नेतृत्व और सरकार की मांग कर रहे है जो अनुबंध कर्मियों के नियमितिकरण की दिशा में कार्य कर सके। ऐसे कामकाज से नेतृत्व को समर्थन मिलना स्वाभाविक है।