ट्रेन हादसे की 10 कहानी : "पहले मां -पिता की मौत हुई, फिर रोते-रोते बच्चे की भी मौत हो गयी", ट्रेन हादसे के चश्मदीदों की जुबानी दिल दहला देने वाली कहानी

बालासोर। ओड़िशा के बालासोर में रेस्क्यू अब खत्म हो गया है। हादसे को लेकर जो कहानी आ रही है वो काफी दर्दनाक है। किसी के बच्चे की मौत हुई है, तो किसी बच्चे के मां-पिता की मौत हो गयी है। कोई ट्रेन से कटकर पूरी तरह अपाहिज हो गया है, तो कोई विधवा और लवारिश हो गया है। हादसे के 10 चश्मदीदों की आंखोंदेखी हम आपको बता रहे हैं, जिसे पढ़कर आपके रौंगटे खड़े हो जायेंगे, आपको ये मालूम पड़ेगा की हादसा कितना भयंकर था।

पहलें मां-पिता की मौत हुई, फिर रोते-रोते वहीं बच्चा भी मर गया
एक चश्मदीद टूटू विश्वास ने दुर्घटना के बाद का मंज़र बयान किया. उन्होंने बताया कि जब ये हादसा हुआ तो उस समय वो घर पर ही थे टूटू विश्वास ने बताया, "हमें ज़ोर से आवाज़ आई. हम घर से बाहर निकल आए तो देखे कि बाहर ये दुर्घटना हो चुकी थी. मालगाड़ी के ऊपर ट्रेन चढ़ गई थी." "जब मैं यहां पहुंचा तो देखा बहुत से लोग घायल थे, कई लोगों की मौत हो चुकी थी. एक छोटा बच्चा यहां पर रो रहा था जिसके माता-पिता की मौत हो चुकी थी. रोते रोते उस बच्चे की भी मौत हो गई.""बहुत से लोग यहां पानी मांग रहे थे. मैंने जितना संभव था लोगों को पानी दिया. हमारे गांव से लोग यहां आकर लोगों की मदद कर रहे थे."टूटू विश्वास ने बताया कि घटनास्थल पर कई लोग जख़्मी थे और ट्रेन से बाहर निकल रहे थे.उन्होंने कहा, "कुछ घायल लोगों को हम बस स्टॉप पर लेकर गए तो वो हमारा धन्यवाद करने लगे. कल का जो दृश्य था वो देखकर हमारा दिमाग काम नहीं कर रहा था. मेरे शरीर पर ख़ून ही ख़ून फैल गया था." "जब मैं ट्रेन से बाहर निकला, तो मैंने देखा कि चारों ओर शरीर के अंग बिखरे हुए हैं, एक पैर यहां, एक हाथ वहां. कहीं किसी का चेहरा पड़ा था."

मेरे सामने ही पति-पत्नी और दो बच्चे की जान चली गयी

एक यात्रा रोहित विशाल ने बताया कि बताया कि जब वो ट्रेन से बाहर आया तो उसने देखा कि किसी का हाथ नहीं था तो किसी का पैर नहीं था तो किसी का चेहरा ही विकृत हो गया था। मेरे सामने ही एक फैमली सफर कर रही थी, पति पत्नी और दो बच्चे थे, टक्कर के बाद लड़की खिड़की से बाहर निकल गयी, उन तीनों की भी मौत हो गयी। मेरी नजर के सामने चारों लोग मर गये। बच्चे और बच्ची 4-5 साल के होंगे। मेरे हिसाब से वो कोई अधिकारी थे, मेरी सफर के दौरान उनसे बात भी हुई थी, मां की गोदी में बच्चे मरते वक्त भी चिपका था।

बेटी का कर रहे थे इंतजार, आयी हादसे की खबर
हावड़ा रेलवे स्टेशन पर 60 साल की सपन चौधरी अपनी 23 साल की बेटी आईशी चौधरी का इंतजार रही थीं, उन्होंने कहा कि, मेरी बेटी जिंदा है, लेकिन कांच के टुकड़ों से उसे चोट लगी है.स्टेशन पर ही 52 साल के शेख मोइनुद्दीन अपनी बेटा नफीसा परवीन का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने कहा कि "मेरी बेटी कर्नाटक में नर्सिंग कर रही है. वो छुट्टियों में घर आ रही थी. मैंने उससे फोन पर बात की. जिस ट्रेन में हादसा हुआ वो उसी में थी, लेकिन वो ठीक है.रिपन दास नाम के एक शख्स भी इस घटना में घायल हो गए. उनके भाई ने बताया कि " जब उसने मुझे फोन किया, तो वो एम्बुलेंस में था. उसकी गर्दन, कमर और पैर में चोट हैं….सटीक संख्या मालूम नहीं लेकिन हमें पता चला है कि कई लोग घायल हुए हैं और कुछ लोगों की जान चली गई है."

मैं सो रहा था, तभी मेरे ऊपर 15-20 लोग गिरे
नवीन सुरागी ने कहा- मेरी आंख लग गई थी। उसी टाइम जब गाड़ी पलटी तो मेरी नींद टूट गई। दस से पंद्रह लोग मेरे ऊपर आकर गिर गए। जब बचाव कार्य शुरू हुआ तो मैं सबके नीचे दबा हुआ था। मेरे हाथ और गर्दन में चोट आई है। जब मैं ट्रेन की बोगी से बाहर आया तो भयानक नजारा दिखा। लोगों के हाथ-पैर टूटे हुए तो किसी का चेहरा बिगड़ा हुआ था। मैं यहीं आकर बैठ गया। एक यात्री ने कहा- “मैं कोरामंडल से लौट रही थी। ट्रेन के वाशरूम से बाहर निकली तो देखा कि ट्रेन पूरी टेढ़ी हो गई। संतुलन बिगड़ने से मैं खुद को संभाल नहीं पाई। पूरा सामान इधर-उधर हो गया था। लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरे पड़े। कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या है।

मेरे सामने कई लोगों की जान चली गयी, मेरे भी हाथ में चोट है
सिद्धार्थ नायक चेन्नई जा रहे थे। वो कहते हैं कि मुझे भूख लगी थी, मैं साइड अपर में बैठा था, मैं नीचे आकर कुछ ब्रेकफास्ट निकाल रहा था, तभी जोर से धमाका हुआ। ऐसा लगा मानों बम धमाका हुआ है। एक महिला और उनका बहुत छोटा बच्चा ऊंपर वाले बर्थ से नीचे गिरा, बच्चा गिरते ही मर गया, मां भी थोड़े देर बाद मर गयी। मुझे पता चला कि ये दो ही लोग थे उस फैमली के, दोनों की मौत हो गयी। मेरे सामने तीन स्टूडेंट जैसे लड़के थे, एक नर्सिंग कॉलेज की स्टूडेंट थी, उसके गले में कार्ड था, उसकी भी मौतहो गयी। सब जगह खून-खून पसरा था।

पूरी ट्रेन ही टेढ़ी हो गयी थी

कोरोमंडल ट्रेन की पैसेंजर वंदना खटेड़ हादसे को याद करते हुए कांप उठती हैं। उन्होंने बताया कि जब ये हादसा हुआ, तब वे वाशरूम से लौट रही थीं। उन्होंने देखा कि उनकी ट्रेन किसी लचर लकड़ी की तरह टेड़ी हो गई थी। यह देखकर वे कांप उठीं। जैसे-तैसे खुद को संभाला। उनका सामान यहां-वहां फैला पड़ा था। घायल यात्री एक-दूसरे पर गिरे पड़े थे। हर तरफ चीख-पुकार मची थी।

किसी का हाथ नहीं था, किसी का पैर नहीं, कईयों का सर कट गया था
रविंद्र मंडल जो इस हादसे से जुड़े एक चश्मदीद थे, ने बताया कि हादसे के बाद घटनास्थल पर किस तरह के हालात थे। यात्री ने बताया, ‘मैं कोरोमंडल एक्सप्रेस से यात्रा कर रहा था। हम S5 बोगी में थे। जिस समय हादसा हुआ उस उस समय मैं सोया हुआ था। हमने देखा कि किसी का सिर, हाथ या पैर नहीं था। हमारी सीट के नीचे एक दो साल का बच्चा था जो पूरी तरह से सुरक्षित था। बाद में हमने उसके परिजनों को बचाया।’ TMC सांसद डोला सेन ने कहा, ‘मैंने ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं देखी। दोनों यात्री ट्रेनें पूर तरह से भरी हुईं थीं। दोनों ट्रेनों में मिलाकर 3000-4000 लोगों के होने की आशंका है।

ऊपर वाली सीट पर पंखा पकड़कर बैठा रहा, फिर दूसरों की मदद की
एक पैसेंजर ने बताया कि हम S5 बोगी में थे और जिस समय हादसा हुआ उस उस समय मैं सोया हुआ था। तेज आवाज से मेरी नींद खुली। मैंने देखा कि ट्रेन पलट गई है। मेरी सीट ऊपर वाली थी, मैं वहां पंखा पकड़ कर बैठा रहा। ट्रेन में भगदड़ मच गई थी। लोग बचाओ-बचाओ चिल्ला रहे थे।तभी पैंट्री कार में आग लग गई। हम दूसरी तरफ भागे, तो हमने देखा कि वहां मरे हुए लोग पड़े हैं जिसमें किसी का हाथ नहीं है, किसी का पैर नहीं है। तब तक कोई बाहरी व्यक्ति मदद के लिए नहीं आ पाया था। ट्रेन से बाहर निकलकर लोग ही एक-दूसरे की मदद कर रहे थे। अच्छी बात ये थी कि हमारी सीट के नीचे एक 2 साल का बच्चा था, जो बिल्कुल सुरक्षित था। हमने उसके परिवार को बचाने में मदद की।

मैं 6:40 पर बालासोर से ट्रेन में बैठा, 6:55 पर हादसा हो गया
एक पैसेंजर सौम्यरंजन शेट्टी ने बताया कि वे भद्रक ब्लॉक में रहते हैं और बालासोर में नौकरी करते हैं। शाम को घर जाने के लिए उन्होंने 6:40 बजे बालासोर से कोरोमंडल ट्रेन पकड़ी। 6:55 पर बहानगा स्टेशन पर कुछ आवाज आई और ट्रेन पलट गई। तब समझ आया कि ट्रेन का एक्सीडेंट हो गया है।जैसे ही ट्रेन रुकी, तो मैं पहले बाहर निकला। मेरे साथ जो तीन-चार लोग थे, उनका रेस्क्यू किया गया। एक आदमी मुझे पकड़कर नीचे लाया और पानी पिलाया। इसके बाद मुझे एम्बुलेंस में बिठाकर अस्पताल लाया गया।

सब तरफ खून ही खून, रोना चिल्लाना था
एक चश्मदीद गिरिजाशंकर रथ ने बताया, "शाम को जब ये हादसा हुआ तो एक ट्रेन अप से आ रही थी दूसरी डाउन से आ रही थी. वहीं एक पटरी पर मालगाड़ी वहीं पर खड़ी थी. कोरोमंडल एक्सप्रेस पटरी से उतर कर मालगाड़ी से टकराई. वहां अफ़रातफ़री मच गई." "दूसरी तरफ से डाउन गाड़ी शालीमार एक्सप्रेस आ रही थी. वो पीछे से टकराई. उसके दो डिब्बे भी पटरी से उतर गए. चारों तरफ अफरातफरी मची हुई थी. हम वहां दौड़ कर पहुंचे और लोगों की मदद करने में जुट गए. हमने लोगों को डिब्बे से बाहर आने में मदद की. ये काम क़रीब रात भर चलता रहा." पूरी जगह खाली खून ही खून। एक बोगी के तो लगभग सभी लोगों की हालत बहुत खराब थी।

HPBL Desk
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