चंपाई बन सकते थे सोरेन परिवार के लिए खतरा, गठबंधन के नेताओं को भी खटक रहे थे, जानिये क्यों

रांची। उम्मीद नहीं थी, कि हेमंत सोरेन इतनी जल्दी चंपाई सोरेन से कुर्सी छिन लेंगे। लेकिन जिस तरह से आनन-फानन में बैठक बुलायी गयी और फिर अचानक से पावर ट्रांसफर का फैसला लिया गया, उसने सियासी गलियारों में नयी बहस छेड़ दी है। चर्चा इस बात की भी है कि 5 महीने के कार्यकाल में चंपाई सोरेन ने बड़ी परिपक्वता के साथ सरकार चलायी। कई बड़े फैसले लिये और गठबंधन के साथियों को कैबिनेट में तवज्जों दिया। लिहाजा वो एक मजबूत और मंझे हुए मुख्यमंत्री के रूप में उभर रहे थे।


ऐसे में सोरेन परिवार के साथ-साथ गठबंधन के भी कई नेताओं के लिए चंपाई बड़ा खतरा बनते जा रहे थे। मुख्यमंत्री बनने के बावजूद उनकी सादगी नजर आती थी। वो लोगों से मिलते भी थे और समस्याओं का गंभीरता से निराकरण भी करते थे। चंपाई सोरेन ने कम समय में कई बड़ी योजनाओं का ऐलान कर दिया था। 3 महीने के भीतर 40 हजार नौकरियों का उनका ऐलान युवाओं के बीच उनकी प्रसिद्धि को बढ़ा रहा था।


वहीं महिलाओं को हर महीने 1 हजार रुपये देना, फ्री बिजली, अबुआ स्वास्थ्य योजना जैसे फैसले उनकी लोकप्रियता को चार चांद लगा रहे थे। विधानसभा चुनाव से पहले एक के बाद एक कई योजना और रोजगार का वादा चंपाई को मजबूत कर रहा था। ऐसे में गठबंधन के कई नेताओं को डर था कि चंपाई अगर लंबे समय तक मुख्यमंत्री रह गए तो सीएम पद का एक नया दावेदार खड़ा हो सकता है।


हालांकि एक पहलू ये भी है कि चंपाई सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस के कई विधायक नाराज थे। दबी जुबान ये जानकारी आ रही थी, कि कांग्रेस के नेताओं के कई काम विभाग में अटके थे। उनका काम नहीं हो पा रहा था, लिहाजा कांग्रेस का चंपाई के खिलाफ दवाब था। कांग्रेस यह बदलाव इसलिए भी चाहती थी कि विधानसभा चुनाव में कम समय बचे हैं। ऐसे में कांग्रेस विधायकों के क्षेत्र के कई काम अटके हैं, अगर वह समय पर पूरे नहीं हुए तो अगले विधानसभा चुनाव में वोट मांगने में परेशानी होगी। हेमंत सोरेन इन वजहों को अच्छी तरह समझते हैं और समय रहते उनके काम पूरे हो जाएंगे।


लिहाजा, गठबंधन के नेताओं ने इसलिए समय रहते नेतृत्व में परिवर्तन का बड़ा फैसला लिया है।हालांकि पहले चर्चा थी कि हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम पद की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इसी रणनीति के तहत गांडेय की सीट भी खाली कराई गई थी। लेकिन, पार्टी के अंदर कई वरिष्ठ नेताओं का विरोध और परिवार में फूट के आसार के मद्देनजर ये फैसला लिया गया कि हेमंत को ही फिर से मुख्यमंत्री बनाया जाये।




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