दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला : जस्टिस ने कहा...‘he’ का मतलब सिर्फ पुरुष नहीं...अब महिला आरोपियों पर भी पॉक्सो एक्ट होगा लागू

नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने पॉक्सो के एक मामले में सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस जयराम भंभानी ने कहा कि, पॉक्सो एक्ट के तहत पेनिट्रेटिव यौन हमले और गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमला (जबरन किसी चीज से बच्चों के निजी अंगों से छेड़छाड़) केस महिलाओं के खिलाफ भी चलाया जा सकता है। ऐसे मामलों में जेंडर कोई ढाल नहीं हैं, क्योंकि यौन अपराधी पुरुष ही नहीं, महिला भी हो सकती है।

कोर्ट ने कहा कि, बच्चों पर यौन हमले में सिर्फ जननांग ही नहीं, बल्कि कोई भी वस्तु प्रवेश कराई जाए, तो वो यौन उत्पीड़न यानी रेप की ही श्रेणी में आता है। ‘he’ का मतलब सिर्फ पुरुष नहीं होता है। दिल्ली हाई कोर्ट ने ये फैसला पॉक्सो एक्ट से जुड़े एक मामले में दिया।

दरअसल, दिल्ली की रहने वाली एक महिला पर 2018 में बच्चे के साथ यौन हिंसा करने के मामले में केस दर्ज हुआ था। इसी साल मार्च में ट्रायल कोर्ट ने महिला पर आरोप तय किए थे। इसके बाद महिला ने हाई कोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी थी कि पॉक्सो एक्ट की धारा 3 और 5 के तहत उसे आरोपी नहीं बनाया जा सकता। महिला की दलील थी कि धारा 3 और 5 के तहत सिर्फ पुरुषों को ही अपराधी बनाया जा सकता है, क्योंकि इसमें ‘he’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है।

जस्टिस भंभानी ने कहा

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस भंभानी ने कहा कि पॉक्सो एक्ट की धार 3 में लिए गए ‘he’ शब्द को ये अर्थ नहीं दिया जा सकता कि ये सिर्फ पुरुष के लिए है। इसके दायरे में महिला और पुरुष, दोनों को लाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि, पॉक्सो एक्ट में कहीं भी ‘he’ को परिभाषित किया गया है। पॉक्सो एक्ट की धारा 2(2) के प्रावधानों को देखते हुए, हमें ‘he’ की परिभाषा पर वापस लौटना चाहिए, जैसा कि आईपीसी की धारा 8 में है. (आईपीसी की धारा 8 में जेंडर को परिभाषित किया गया है। इसमें he का इस्तेमाल पुरुष और महिला, दोनों के लिए किया गया है। जस्टिस भंभानी ने कहा कि पॉक्सो एक्ट इसलिए बनाया गया था ताकि बच्चों को यौन अपराधों से बचाया जा सके, फिर वो अपराध चाहे पुरुष ने किया हो या महिला ने।

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