रिक्शा चालक के बेटे ने NCERT से पढ़ाई कर गरीबी को हराया, IAS बनकर रचा इतिहास

नई दिल्ली। अक्सर कहा जाता है कि, जीवन में आने वाली चुनौतियां और कठिनाइयां ही व्यक्ति की लगन और मेहनत की सबसे अच्छी परीक्षा होती हैं। नारस जिले के एक गरीब परिवार से आने वाले गोविंद जायसवाल की कहानी इस बात को साबित करती है। उनकी प्रेरक यात्रा यह दर्शाती है कि गरीबी और सामाजिक भेदभाव के बावजूद, अथक प्रयास और दृढ़ निश्चय के दम पर व्यक्ति जीवन में बड़ी ऊँचाइयों को छू सकता है।

7वीं कक्षा में मां का हो गया था निधन

गोविंद का बचपन बेहद चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में बीता। जब वह सातवीं कक्षा में था, तब उसकी माँ का निधन हो गया। इस दुखद घटना ने परिवार की मुश्किलें और बढ़ा दीं। उसके पिता रिक्शा चलाते थे, जिससे परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो गया।

बात दें कि, इन चुनौतियों के बावजूद, गोविंद की शिक्षा और भविष्य के प्रति उम्मीदें डगमगाई नहीं। स्कूल में उसे अक्सर उपहास और तिरस्कार का सामना करना पड़ता था। उसके साथी अक्सर उसे "रिक्शा चालक का बेटा" कहकर चिढ़ाते थे और कई बार तो उसके दोस्त भी परिवार की आर्थिक तंगी के कारण उससे दूरी बना लेते थे।

इस घटना से गोविंद के जीवन में आया था महत्वपूर्ण मोड़

यह घटना गोविंद के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। एक दिन जब वह खेलने के लिए अपने एक दोस्त के घर गया, तो उसके दोस्त के पिता ने गोविंद को उससे दूरी बनाए रखने की सलाह दी। इस अपमानजनक व्यवहार ने गोविंद को बहुत प्रभावित किया और सामाजिक स्थिति के महत्व के बारे में उसकी जागरूकता को और बढ़ा दिया। वह अपने शिक्षक के पास गया और अपनी सामाजिक स्थिति को सुधारने और समुदाय में सम्मान पाने के तरीकों के बारे में पूछा। शिक्षक ने उसके सामने दो विकल्प रखे: एक सफल व्यवसायी बनना या आईएएस अधिकारी के रूप में अपना करियर बनाना। इस मार्गदर्शन ने गोविंद के मन में आईएएस अधिकारी बनने की आकांक्षा जगा दी।

सपनों को साकार करने के लिए कठिन प्रयास किया शुरू

अपने सपनों को साकार करने के लिए गोविंद ने कठोर प्रयास शुरू किए। सीमित संसाधनों के बावजूद उनके पिता ने अपने बेटे की शिक्षा के लिए ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा बेचने का महत्वपूर्ण त्याग किया। फिर भी, वित्तीय कठिनाइयाँ लगातार चुनौती बनती रहीं। सेप्टिक संक्रमण से पीड़ित होने के बावजूद, उनके पिता अपनी कड़ी मेहनत और लगन में दृढ़ रहे। उन्होंने रिक्शा चलाकर अपने बेटे की शिक्षा का समर्थन किया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि गोविंद को ज्ञान की खोज में कोई बाधा न आए।

UPSC में 48वीं रैंक की हासिल

गोविंद ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से यूपीएससी परीक्षा में 48वीं रैंक हासिल की और आखिरकार 2006 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में सफल हुए। उनकी यात्रा गरीबी, तिरस्कार और अभाव के खिलाफ संघर्ष की कहानी है। गोविंद का आईएएस अधिकारी बनने का सपना अब साकार हो चुका है और उन्होंने समाज को यह संदेश दिया है कि प्रयास और दृढ़ संकल्प से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है।

गोविंद की कहानी न केवल उनके परिवार के लिए प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक आदर्श उदाहरण भी है। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ और सामाजिक भेदभाव केवल अस्थायी बाधाएँ हैं, जिन्हें कड़ी मेहनत, ईमानदारी और दृढ़ संकल्प के ज़रिए दूर किया जा सकता है। आज गोविंद जायसवाल की यात्रा प्रेरणा का स्रोत बन गई है, जो हमें सिखाती है कि किसी भी परिस्थिति में हमें हार मानने के बजाय अपने प्रयासों और संघर्षों पर भरोसा बनाए रखना चाहिए।

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