13 साल में उच्चतम स्तर पर भारत में पहुंची बेरोजगारी : वर्ल्ड बैंक के कहा - जो जितना पढ़ा लिखा वो उतना बेरोजगार, देश का हर तीसरे युवा को नौकरी की तलाश

नई दिल्ली। देश में बेरोजगारी का मुद्दा इस बार के लोकसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बीजेपी को अल्पमत में लाने में बेरोजगारी जैसे मुद्दे ने अहम भूमिका निभाई है। यही वजह रही कि अग्निवीर योजना तक में मोदी सरकार को बदलाव करने पड़ गए। बेरोजगारी की समस्या ने देश में कितना विकराल रूप ले लिया है इस बात की तस्दीक अब वर्ल्ड बैंक ने भी कर दी है। एक तरफ देश में नौकरी के लिए युवाओं की कतार बढ़ रही है। दूसरी ओर, उद्योगों की शिकायत है कि काबिल लोग नहीं मिल रहे। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति क्यों बन रही है। जवाब इंडिया एम्प्लाईमेंट रिपोर्ट 2024 में मिलता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, देश की कामकाजी आबादी 13 साल में 3% बढ़कर 64% हो गई। यह 2036 तक 65% तक हो सकती है। सीएमआईई के आंकड़े बताते हैं कि जून में देश में बेरोजगारी दर 13 साल के उच्चतम स्तर (9.2%) पर रही। जबकि, मई में यह दर 7% थी। यह रिपोर्ट बताती है कि बेरोजगारी दर बढ़ने के विपरीत लेबर पार्टिसिपेशन रेट बढ़ा है। जून में यह दर बढ़कर 41.4% दर्ज की गई, जो मई में 40.8% थी। श्रमिकों की मांग और बेरोजगारी दर का बदलता रुझान बताता है कि ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अधिक अवसर बनाए जाने की जरूरत है।

किस लिए बढ़ा गैप

देश का हर तीसरा युवा न उच्च शिक्षा ले रहा, न रोजगार कर रहा इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की ताजा रिपोर्ट मुताबिक, देश में हर तीसरा युवा न तो शिक्षा ले रहा है, न ही जॉब कर रहा है। इससे भी बुरी बात यह है कि उनके पास कोई कौशल आधारित प्रशिक्षण भी नहीं है। करीब 40% युवा सेकंडरी से कम पढ़े हैं और 4% की ही व्यावसायिक प्रशिक्षण तक पहुंच है। साल 2000 से बेरोजगारी में बढ़ोतरी के साथ ऐसी युवा आबादी बढ़ रही है। साल 2000 में युवा बेरोजगारी दर 5.7% थी। जबकि 2019 में यह बढ़कर 17.5% हो गई। यानी 207% से अधिक बढ़ोतरी ।

मांग शिक्षित श्रमिकों की लेकिन ऐसे श्रमिक नहीं

शिक्षित श्रमिकों की मांग बढ़ी, पर ऐसे श्रमिक नहीं बढ़े आरबीआई के मुताबिक, तीन दशक के श्रम गुणवत्ता सूचकांक (लेबर क्वालिटी इंडेक्स) से पता चलता है कि उद्योग अब अधिक शिक्षित लोगों को नौकरी दे रहे हैं। इसके मुताबिक, टेक्सटाइल उद्योग में यह सूचकांक 107.5 से बढ़कर 129.9 हो गया, जबकि श्रमिकों की संख्या सालाना 1% से भी कम बढ़ी। यह बताता है कि शिक्षित श्रमिकों की मांग तेजी से बढ़ी, पर संख्या नहीं बढ़ी। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में सुझाव दिया था कि उद्योग खुद के कॉलेज और कौशल विकास केंद्र स्थापित करें।

चार साल में 8 करोड़ को रोजगार मिला

पिछले हफ्ते जारी रिजर्व बैंक का केएलईएमएस डेटा बताता है कि 2017-18 से 2021-22 तक 8 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मिला है। यानी हर साल 2 करोड़ से अधिक लोगों को जॉब मिले।

जितना पढ़ा लिखा उतना बेरोजगार - वर्ल्ड बैंक

वर्ल्ड बैंक की दक्षिण एशिया पर ताजा रिपोर्ट 'जॉब्स फॉर रेजिलिएस' में कहा गया है कि भारत में यह धारणा कि पढ़ाई और ट्रेनिंग कर आप नौकरी के योग्य हो सकते हैं, भ्रम है। देश में शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी अधिक है, जो बेरोजगार लोगों का 66% है। जो जितना अधिक शिक्षित होगा, उसके बेरोजगार रहने की आशंका उतनी अधिक होगी। 2022 में भारत में ग्रेजुएट्स के बीच बेरोजगारी 29% थी, जबकि जो पढ़-लिख नहीं सकते, उनमें यह सिर्फ 3.4% थी।

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