हेमंत सोरेन का बाहर आना कितना जरूरी: पार्टी के अंदर-बाहर क्यों है बैचेनी, हाईकोर्ट में जमानत की फिर लगायी गुहार

रांची। हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को चार महीने हो गये हैं। फिलहाल रिहाई की गुंजाईश दिख नहीं रही है। लिहाजा अब पार्टी के अंदर और बाहर दोनों तरफ से बैचेनी बढ़ने लगी है। लोकसभा चुनाव तो झामुमो ने इंडी गठबंधन के सहारे किसी तरह से पार लगा लिया है, लेकिन विधानसभा चुनाव बिना हेमंत पार्टी अपना बेड़ा पार नहीं लगा पायेगी। लिहाजा, रिहाई के लिए हर मुमकीन कोशिश में पार्टी जुटी हुई है। हेमंत सोरेन खुद भी पार्टी के भविष्य के लिए हर हाल में बाहर आना चाह रहे हैं।

ED की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका खारिज होने के बाद अब एक बार फिर से हेमंत सोरेन ने जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सोरेन की ओर से दाखिल जमानत याचिका में कहा गया है कि उनके खिलाफ जिस 8.86 एकड़ जमीन पर कब्जे का आरोप लगाते हुए ईडी ने कार्रवाई की है, उससे संबंधित एक भी दस्तावेज ईडी के पास नहीं है। यह झारखंड की सीएनटी (छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट) के तहत भुईंहरी नेचर की जमीन है, जो किसी भी हाल में किसी व्यक्ति के नाम पर ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।

याचिका में यह भी कहा गया है कि जमीन पर अवैध कब्जे में पीएमएलए के तहत शेड्यूल ऑफेंस का केस नहीं बनता. बहरहाल, सोरेन की इस याचिका पर फिलहाल सुनवाई की तारीख तय नहीं हुई है। इससे पहले 22 मई को उन्होंने ईडी की कार्रवाई और गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट की इजाजत के बाद वापस ले ली थी।

आपको बता दें कि 21-22 मई को सुप्रीम कोर्ट की वेकेशन बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई की थी. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि सोरेन की ओर से फाइल की गई पिटीशन में इस फैक्ट को छिपाया गया कि उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी की स्पेशल कोर्ट संज्ञान ले चुकी है।जिसके बाद हेमंत सोरेन के वकील कपिल सिब्बल ने याचिका वापस ले ली थी।

HPBL Desk
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