सांसद बनने के चक्कर में विधायकी भी चली गयी, लोकसभा चुनाव के परिणाम में इस नेताजी के साथ हो गयी गुगली… जानिये क्या है पूरा मामला
जयपुर। ना माया मिली ना राम… कहावत तो सुनी ही होगी। हकीकत में ये एक नेता के साथ भी चरितार्थ हो गया। सांसद बनने के लिए नेताजी ने विधायकी छोड़ी, लेकिन अब लोकसभा चुनाव भी हार गये। लोकसभा चुनाव 2024 के सामने आए चुनाव परिणामों से राजस्थान में बीजेपी के साथ-साथ आदिवासी समाज के दिग्गज नेता महेन्द्रजीत सिंह मालवीय को तगड़ा झटका लगा है। बांसवाड़ा जिले की बागीदौरा विधायक मालवीय चुनावों से पहले ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे।
बीजेपी में शामिल होते ही पार्टी ने उनको लोकसभा चुनाव का टिकट थमा दिया। उसके बाद मालवीय ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन लोकसभा चुनाव में वे करीब सवा दो लाख वोटों से भारत आदिवासी पार्टी के नेता राजकुमार रौत से बुरी तरह से हार गए है। महेन्द्रजीत सिंह मालवीय को राजस्थान में आदिवासी समाज का बड़ा चेहरा माना जाता है।
वे बासंवाड़ा की बागीदौरा से चार बार विधायक रहे चुके हैं। उनकी पत्नी रेशम मालवीय वर्तमान में बांसवाड़ा की जिला प्रमुख है। मालवीय ने पांच माह पहले बागीदौरा से चौथी बार विधानसभा का चुनाव 41 हजार से ज्यादा वोटों से बड़े अंतर से जीता था। इससे पहले वे कांग्रेस की पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे थे। मालवीय का बांसवाड़ा और डूंगरपुर इलाके में अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है।
लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले ही मालवीय ने पाला बदल लिया था. उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़कर कमल का फूल थाम लिया था. उसके बाद बीजेपी ने आदिवासी बाहुल्य बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट को फिर से जीतने के लिए मालवीय पर दांव लगा दिया. मालवीय के जाने से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था. हालात यह हो गए थे कांग्रेस नामांकन भरने का समय खत्म होने से डेढ़ घंटे पहले तक वहां अपना प्रत्याशी तक तय नहीं पाई थी. कांग्रेस ने भारत आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार चौरासी विधानसभा क्षेत्र के राजकुमार रौत को अपना समर्थन दे दिया. रौत पहले ही अपनी पार्टी से नामांकन दाखिल कर चुके थे. बाद में युवा आदिवासी नेता राजकुमार ने लोकसभा चुनाव में मालवीय को 247000 से अधिक मतों शिकस्त दे दी. अब मालवीय न तो विधायक हैं और न ही सांसद बन पाए हैं।