Jharkhand Election: बहुत सीक्रेट है आपकी अंगुली पर लगने वाली ये अमिट स्याही, आज तक नहीं जान पाया कोई इसका फॉर्मूला, जानिए कब हुई थी शुरुआत?
Jharkhand Election: This indelible ink that is applied on your finger is very secret, till date no one has been able to know its formula, know when it started?
Jharkhand Election: अगर आप वोटर हैं, तो आपकी भी अंगुली में नीली स्याही तो जरूर लगी होगी। अगर आपने वोट नहीं डाला है, तो अंगुलियों में लगी नीली स्याही को तो देखा ही होगा। इस निशान की अपनी अगल खासियत होती है। कई जगहों पर इसी निशान को दिखाकर कई तरह के छूट वोटर्स को दिये जाते हैं।
प्रशासन की तरफ से इसी वोट के आधार पर मतदान के फर्जीवाड़े को रोका भी जाता है। लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि वोट डालने के बाद बाएं हाथ की तर्जनी उंगली पर जो स्याही लगी होती है, वो आखिरकार होती क्या है। क्या आप जानते हैं कि यह स्याही कहां बनती है और इसका क्या इतिहास है।
यह स्याही कैसे बनाई जाती है और क्या इसे कोई भी बना सकता है। आपके मन में ऐसे कई सारे सवाल होंगे। आइए इस अमिट स्याही (indelible ink) के बार में विस्तार से जानते हैं।
अमिट स्याही की जरूरत कब पड़ी
देश में साल 1951-52 में पहली बार चुनाव हुए थे। उस चुनाव में कई लोगों ने किसी अन्य व्यक्ति के स्थान पर वोट डाल दिया तो कईयो ने एक से अधिक बार मतदान का प्रयोग किया। चुनाव आयोग के पास जब इस तरह की शिकायतें आईं, तो उसने इसका समाधान निकालने के विकल्पों पर विचार किया।
चुनाव आयोग ने सोचा कि क्यों ना मतदाता की उंगली पर एक निशान बनाया जाए, जिससे यह पता लग सके कि वो वोट डाल चुका है। इसमें मुश्किल यह थी कि जिस स्याही का निशान बनाया जाए, वह अमिट होनी चाहिए। चुनाव आयोग ने इसके लिए नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (NPL) से संपर्क किया।
इसके बाद एनपीएल ने ऐसी अमिट स्याही तैयार की, जिसे ना तो पानी से और ना ही किसी केमिकल से हटाया जा सकता था। एनपीएल ने यह स्याही बनाने का ऑर्डर मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी (Mysore Paints and Varnish Limited, MPVL) को दिया। आइए अब जानते हैं कि इस कंपनी का क्या इतिहास है।
वाडियार राजवंश से जुड़ा है इतिहास
अमिट स्याही बनाने वाली कंपनी एमपीवीएल का इतिहास वाडियार राजवंश से जुड़ा है। इस राजवंश के पास खुद की सोने की खान थी। यह राजवंश दुनिया के सबसे अमीर राजघरानों में गिना जाता था। कर्नाटक के मैसूर में वाडियार राजवंश का राज था। महाराजा कृष्णराज वाडियार आजादी से पहले यहां के शासक थे।
वाडियार ने साल 1937 में पेंट और वार्निश की एक फैक्ट्री खोली, जिसका नाम मैसूर लैक एंड पेंट्स रखा। देश के आजाद होने पर यह फैक्ट्री कर्नाटक सरकार के पास चली गई। इसके बाद साल 1989 में इस फैक्ट्री का नाम मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड रख दिया गया। इसी फैक्ट्री को एनपीएल ने अमिट स्याही बनाने का ऑर्डर दिया था। यह फैक्ट्री आज तक यह अमिट स्याही बना रही है।
जानते हैं पहली बार कब इस्तेमाल हुई
साल 1962 में हुए चुनावों में पहली बार एमपीवीएल कंपनी द्वारा बनाई अमिट स्याही का इस्तेमाल किया गया। तब से लगातार इस स्याही का उपयोग चुनावों में हो रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस स्याही का निशान 15 दिनों से पहले नहीं मिटता।
स्याही कैसे बनती है
चुनावों में इस्तेमाल होने वाली इस अमिट स्याही का फॉर्मूला गुप्त है। ना तो नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया ने और ना ही मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड ने इस स्याही के फॉर्मूले को सार्वजनिक किया है। एक बार ऐसी अफवाह उड़ी थी कि इस स्याही को बनाने में सुअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है, लेकिन इन अफवाहों को खारिज कर दिया गया।
कुछ जानकारों के मुताबिक इस स्याही में सिल्वर नाइट्रेट का प्रयोग होता है। इससे अमिट स्याही फोटोसेंसिटिव प्रकृति की हो जाती है। इसके चलते यह स्याही कुछ ही देर में सूख जाती है।
कई देशों में होती है निर्यात
एमपीवीएल की बनी अमिट स्याही का प्रयोग सिर्फ भारत में ही नहीं होता। दुनियाभर के कई सारे देश एमपीवीएल से यह अमिट स्याही खरीदते हैं और अपने यहां चुनावों में इसका उपयोग करते हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार 28 देश एमपीवीएल से यह स्याही खरीदते हैं। इन देशों में दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, मलेशिया, मालदीव, कंबोडिया, अफगानिस्तान, तुर्की, नाइजीरिया, नेपाल, घाना, पापुआ न्यू गिनी, बुर्कीना फासो, बुरुंडी, टोगो और सिएरा लियोन भी शामिल हैं।