पारा टीचर से मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने तक, जानिये कौन हैं गमालियल हेंब्रम, जिसे भाजपा मान रही है हेमंत के खिलाफ तुरुप का इक्का
Jharkhand Vidhansabha Chunav। झारखंड चुनाव में एक प्रत्याशी की खूब चर्चा हो रही है। प्रत्याशी का नाम गमालियन हेंब्रम। बरहेट सीट से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ भाजपा ने इस प्रत्याशी को उतारा है।
दावा है कि जमीन से जुड़ा ये प्रत्याशी झामुमो प्रत्याशी हेमंत सोरेन की मुश्किलें बढ़ायेगा। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बरहेट विधानसभा सीट से बीजेपी ने गमालियल हेम्ब्रम की बरहेट के ग्रामीण इलाकों में बहुत पकड़ है।
भाजपा दावा कर रही है कि इस बार बरहेट में हेमंत सोरेन का रास्ता गमालियल हेंब्रम रोकने में जरूर कामयाब होंगे। गमालियल हेंब्रम नेता बनने से पहले पारा शिक्षक थे। पारा शिक्षक की नौकरी उन्होंने 5 साल पहले छोड़ी और फिर नेता बने।
उनकी पत्नी विनीता टुडू बरहेट की खैरवा पंचायत से लगातार 2 बार मुखिया चुनी गईं हैं। यह सीट जेएमएम का अभेद्य किला मानी जाती है, जहां उसे हराना आसान नहीं होता. यहां 1957 से 1962 तक के चुनाव में झारखंड पार्टी के टिकट पर बाबूलाल टुडू चुनाव जीतते रहे।
कौन है गमालियल हेंब्रम
गमालियल हेंब्र पारा टीचर रहे हैं। लेकिन 2019 चुनाव के ठीक पहले उन्होंने पारा शिक्षक के पद से इस्तीफा दे दिया। 2019 में वो बरहेट से चुनाव लड़े, उन्हें आजसू ने प्रत्याशी बनाया था। हालांकि इस चुनाव में उनका प्रदर्शन बेहद खराब था। महज 25 साल की उम्र में उन्होंने बरहेट (एसटी) विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था। उस वक्त हेमंत सोरेन इस सीट से चुनाव लड़ रहे थे. भाजपा ने सिमोन मालतो को मैदान में उतारा था।
वर्ष 2019 के चुनाव में हेमंत सोरेन को 73,725 वोट मिले थे। दूसरे स्थान पर मालतो रहे थे, उनको 47,985 वोट प्राप्त हुए थे। झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के उम्मीदवार होपना टुडू को 2,622 और आजसू के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले गमालियल हेम्ब्रम को 2,573 वोट मिले थे।
पारा टीचर से बने नेता
2019 में शिक्षक से राजनीति की दुनिया में कदम रखने वाले गमालियल फुटबाल प्रेमी हैं। क्षेत्र में इनकी पहचान एक बड़ा फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन करने वाले की है। जब भी फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन होता है, उसमें भारी संख्या में लोग जुटते हैं।
देश के कई राज्यों के फुटबॉल खिलाड़ी तो इसमें खेलते ही हैं, कई विदेशी खिलाड़ी भी खेलने के लिए आते हैं। उनकी पत्नी विनीता टुडू बरहेट की खैरवा पंचायत से लगातार 2 बार मुखिया चुनी गईं हैं।
बरहेट है झामुमो का गढ़
जेएमएम का अभेद्य किला मानी जाती है, जहां उसे हराना आसान नहीं होता। यहां 1957 से 1962 तक के चुनाव में झारखंड पार्टी के टिकट पर बाबूलाल टुडू चुनाव जीतते रहे। 1967 औरष 1972 में मसीह सोरेन ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की थी।
1977 में जनता पार्टी के टिकट पर परमेश्वर हेम्ब्रम को जीत मिली थी। इसके बाद 1980 और 1985 में कांग्रेस के थॉमस हांसदा क जीत मिली. 1990, 1995, 2000 और 2009 में चार बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर हेमलाल मुर्मू ने चुनाव जीता।
2014 और 2019 में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व सीएम शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन को जीत मिली थी।