चंपाई के भाजपा में आने के बाद सब ठीक-ठाक तो है., कहीं तूफान के पहले की ये शांति तो नहीं, बाबूलाल और अर्जुन मुंडा का क्या होगा?
रांची। चंपाई सोरेन के भाजपा में शामिल होने पर खुशी जितनी है, उससे कहीं ज्यादा दिग्गज नेताओं में बैचेनी है। इसका असर तब दिखेगा, जब चुनाव की घड़ी करीब होगी। कोल्हान टाइगर के नाम से मशहूर चंपाई सोरेन बहुत सटीक राजनीतिज्ञ है, कहते हैं वो राजनीति में कभी कोई फैसला बिना नफा नुकसान के बिना नहीं करते हैं।
झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी उन्होंने यूं ही तो छोड़ा होगा। वैसे ही बीजेपी के भी चंपाई सोरेन को साथ लेने की भी खास वजह है। चंपाई सोरेन का बीजेपी के साथ हो जाना ही फायदे का सौदा है।
अगर चंपाई सोरेन की वजह से झारखंड में हेमंत सोरेन को बीजेपी थोड़ा भी डैमेज कर पाती है, तो वो भी फायदा है, और अगर चंपाई सोरेन की बदौलत संथाल-परगना न सही, कोल्हान क्षेत्र में भी बीजेपी हेमंत सोरेन की पार्टी JMM से बेहतर प्रदर्शन कर लेती है, फिर तो कहना ही क्या – लेकिन यही वो बात है जो झारखंड बीजेपी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी और सूबे के कद्दावर आदिवासी बीजेपी नेता अर्जुन मुंडा के लिए मुश्किलें भी खड़ी कर सकती है।
भाजपा के अंदर फिलहाल तो शांति है, लेकिन कहते हैं वो तूफान के पहले की शांति जैसी है। चंपाई सोरेन की बीजेपी को जरूरत तो है, लेकिन वो बाबूलाल मरांडी को नाराज करके तो बिलकुल नहीं. झारखंड चुनाव में बाबूलाल मरांडी को नजरअंदाज करने का मतलब तो यही हुआ कि लोकसभा चुनाव में यूपी जैसे नतीजे के लिए मन बना लेना।
बाबूलाल मरांडी जैसी ही भावना अर्जुन मुंडा की भी होगी, बीजेपी भी ये बात जानती है – और चंपाई सोरेन को बीजेपी में लेने का सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर भी यही है. बीजेपी ने पूरे मामले को अच्छे से हैंडल नहीं किया तो लेने के देने भी पड़ सकते हैं।
अगर, चंपाई पर दांव लगाकर भाजपा अगर सत्ता के करीब तक पहुंच जाती है, तो फिर क्या होगा? मुख्यमंत्री की दौड़ में इतने नेता खड़े हैं कि पार्टी की स्थिति गठबंधन से भी ज्यादा बुरी हो जायेगी। अभी चंपाई सोरेन को मिलाकर झारखंड बीजेपी में तीन-तीन पूर्व मुख्यमंत्री हो जाएंगे।
जाहिर है, अपने चुनावी प्रदर्शन की बदौलत तीनों फिर से कुर्सी के दावेदार हो सकते हैं, जब तक कि बीजेपी नेतृत्व को मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसा कोई नया चेहरा नहीं मिल जाता।
चंपाई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं, और पार्टी में हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन भी उनको शिबू सोरेन जैसा ही सम्मान देते रहे हैं। सवाल ये है कि क्या बीजेपी चंपाई सोरेन को आते ही सब बरसाने लगेगी, या देखेगी…परखेगी… जगह जगह आजमाएगी, और नतीजे आने तक इंतजार करेगी।
सरायकेला-खरसावां, पश्चिम सिंहभूम, घाटशिला, पोटका, ईचागढ़ और बहरागोड़ा जैसे इलाकों में चंपाई सोरेन का बड़ा जनाधार माना जाता है. मुमकिन है बीजेपी भी मानकर चल रही हो कि वो अकेले दम पर भी नतीजों को पलट सकते हैं. देखा जाये तो इन इलाकों में हार जीत का अंतर भी काफी कम ही रहा है।