झारखंड: क्या SLP के लिए जिम्मेदार अफसरों से होगी 1 लाख के जुर्माने की वसूली, भाजपा ने अधिकारियों को चिन्हित करने की उठायी मांग

Jharkhand News : झारखंड सरकार पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखी नाराजगी दिखायी है। सुप्रीम कोर्ट बार-बार चेतावनी के बावजूद विभिन्न राज्य सरकारों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा दायर की जा रहीं ‘तुच्छ याचिकाओं’ से तंग आ चुका है।

जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा क्योंकि राज्य सरकारों या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) के अधिकारियों को मुकदमेबाजी का खर्च व्यक्तिगत रूप से वहन नहीं करना पड़ता, लेकिन कोर्ट पर ऐसे तुच्छ मामलों का बोझ पड़ रहा है।

पूरा मामला क्या है

एक सरकारी कर्मचारी 13 साल पहले सर्विस से बर्खास्त कर दिया जाता है। विभागीय जांच में उसके खिलाफ अनुशासनहीनता, ड्यूटी में लापरवाही और आदेशों को न मानने जैसे कुल 14 आरोप को सच माना गया और बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया गया।

इसके खिलाफ कर्मचारी ने रिट कोर्ट में याचिका डाली। कोर्ट ने पाया कि इतनी सख्त कार्रवाई को उचित ठहराने का कोई कारण नहीं दिख रहा। आरोप साबित नहीं हुए। रिट कोर्ट ने बर्खास्तगी की वैधता पर ही सवाल उठा दिए। इस पर झारखंड सरकार हाई कोर्ट में अपील कर दी। हाई कोर्ट ने भी रिट कोर्ट के फैसले से सहमति दिखाई तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई।

अब सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए झारखंड सरकार पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों की तरफ से फिजूल की याचिका दाखिल करने पर रोक लगनी चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम विभिन्न राज्य सरकारों और सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा दायर की गईं ऐसी तुच्छ विशेष अनुमति याचिकाओं से तंग आ चुके हैं। पीठ ने कहा कि हम पिछले छह महीने से यह कह रहे हैं। यह काफी है।

इसने कहा कि चेतावनियों के बावजूद विभिन्न राज्य सरकारों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की ओर से पेश वकीलों ने ऐसी तुच्छ याचिकाएं दायर न करने की कोई मंशा नहीं दिखाई है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हम इस मुद्दे के संबंध में राज्य सरकारों और सार्वजनिक उपक्रमों के रवैये में सुधार की कमी देख रहे हैं।

पीठ ने झारखंड सरकार की अपील को खारिज कर दिया और उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे आदेश की तारीख से चार सप्ताह के भीतर चुकाना होगा। कोर्ट ने कहा कि जुर्माने की राशि में से 50,000 रुपये ‘सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन’ (एससीएओआरए) के लिए जमा किए जाएंगे, जिसका उपयोग प्रयोगशाला के लिए किया जाएगा। शेष 50,000 रुपये हाई कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) अधिवक्ता कल्याण कोष में जमा किए जाएंगे।

क्या अधिकारियों से होगी जुर्माने की भरपायी

झारखंड सरकार पर बेवजह एसएलपी दायर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ₹1,00,000 का फाइन लगाया। सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि झारखंड सरकार frivolous मामलों में भी एसएलपी दायर करके कोर्ट का समय बर्बाद करती है और कोर्ट इस से परेशान हो चुकी है ।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार पर ₹1 लाख का फाइन लगाया और यह भी कहा कि वह इस बात पर विचार करें कि जिन अधिकारियों की वजह से ऐसे एसएलपी दायर होते हैं ये पैसा उनसे वसूला जाए।

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क्या अब भी झारखंड सरकार सबक लेगी या अधिकारियों को बचाने के लिए हर मामलों में वह महंगे महंगे वकील करके सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाती ही रहेगी?

बाबूलाल मरांडी ने ये की है मांग

हेमंत सोरेन जी इस विषय को गंभीरता से लीजिये। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करिए। जिन अधिकारियों ने दुर्भावना से ग्रस्त होकर ऐसे एसएलपी दायर किये हैं, सरकार का वक्त और ग़रीबों की गाढ़ी कमाई का पैसा बर्बाद किया है, उनसे बिना विलंब इस पैसे की वसूली करवाईये।

और हाँ, याद रहे कि राज्य में भाजपा की सरकार बनते ही दुर्भावना ग्रस्त होकर बिना सोचे समझे किये गये ऐसे मामलों, जिनमें एसलपी में पराजय हुआ है, उसके लिये दोषी अधिकारियों को चिन्हित करवा कर उनसे एसलपी में हुए सरकारी पैसे के खर्चे की वसूली करवाई जायेगी।

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