झारखंड : पिता की मौत से स्कूल छूटा, धनकटनी आंदोलन से शुरू हुआ नेतृत्व का सिलसिला; कहानी दिशोम गुरू की

11 जनवरी को आज झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन 81 साल के हो गये.मोरहाबादी स्थित सरकारी आवास में उनका जन्मदिन धूमधाम से मनाया जायेगा. झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. शिबू सोरेन का जन्म अविभाजित बिहार के हजारीबाग जिला अंतर्गत नेमरा गांव में 11 जनवरी 1944 को सोबरन सोरेन के घर पर हुआ था.

शिबू सोरेन जब महज 13 साल के थे तभी उनके पिता सोबरन सोरेन की 27 नवंबर 1957 को महाजनों ने हत्या करवा दी.

सोबरन सोरेन पेशे से शिक्षक थे. वह लगातार, महाजनों और साहूकारों द्वारा आदिवासियों के शोषण का विरोध किया करते थे. इसी से महाजन क्षुब्ध थे. पिता की हत्या का गहरा असर 13 वर्षीय शिबू सोरेन के मन पर हुआ.

कहते हैं कि इसके बाद उनका मन स्कूली पढ़ाई में नहीं रमा और उन्होंने साहूकारों और महाजनों के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी.

पिता की मौत के बाद आदिवासियों को इकट्ठा किया
शिबू सोरेन ने पिता सोबरन सोरेन की हत्या के बाद इलाके के आदिवासियों को एकजुट किया. उन्होंने महाजनी और साहूकारी प्रथा के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. उन्होंने धनकटनी आंदोलन शुरू किया. इस आंदोलन के तहत आदिवासी, महाजनों के खेत में लगा धान काटकर ले जाते थे.

जिस समय आदिवासी महाजनों के खेत से धान काटते, तब उनके सहयोगी तीर-कमान लेकर पहरा देते.

महाजनों के अत्याचार से तंग आ चुके आदिवासियों में शिबू सोरेन में उम्मीद दिखी. शिबू सोरेन की जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, उनकी लोकप्रियता भी बढ़ती गयी. आदिवासियों को लगा कि शिबू सोरेन उनको सूदखोरों के चंगुल से आजाद करा सकते हैं.

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शिबू सोरेन ने इस मौके पर आदिवासियों के बीच शिक्षा को लेकर जागरूकता का भी प्रसार किया.

आह्वान किया कि आदिवासी हड़िया और शराब का सेवन न करें. शिक्षा हासिल करें. शिक्षित होंगे तो दुनिया का मुकाबला कर सकेंगे. अपने हक और अधिकारों के प्रति जागरूक हो सकेंगे.

उनको आदिवासियों ने दिशोम गुरु की उपाधि दी.

इस आंदोलन से कालांतर में बिनोद बिहारी महतो और एके राय सरीखे नेता भी जुड़ गये. अब इस आंदोलन को एक पायदान ऊपर ले जाने के लिए राजनीतिक पार्टी की जरूरत महसूस हुई.

4 फरवरी 1972 को पड़ी थी झामुमो की नींव
4 फरवरी 1972 को शिबू सोरेन और उनके सहयोगियों की बिनोद बिहारी महतो के घर पर मीटिंग हुई. एक संगठन बनाने का फैसला हुआ. नाम रखा गया झारखंड मुक्ति मोर्चा. बिनोद बिहारी महतो अध्यक्ष चुने गये.

शिबू सोरेन महासचिव बने.

शिबू सोरेन ने 1980 में चुनाव लड़ा लेकिन हार गये. हालांकि, 3 साल बाद हुये मध्यावधि चुनाव में वह जीते. साल 1991 में झामुमो ने कांग्रेस के साथ बिहार विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया.

झामुमो ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया. शिबू सोरेन 3 बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. हालांकि, उनका कार्यकाल तीनों बार काफी छोटा रहा. शिबू सोरेन के दूसरे बेटे हेमंत सोरेन फिलहाल राज्य के मुख्यमंत्री हैं. वह पिछले 6 साल से प्रदेश के सीएम हैं.

उनकी बहू कल्पना मुर्मू सोरेन भी गांडेय विधानसभा सीट से विधायक हैं.

लगातार 8 बार दुमका से सांसद चुने गये शिबू सोरेन
शिबू सोरेन के नाम दुमका लोकसभा सीट से 8 बार सांसद चुने जाने का रिकॉर्ड है.

शिबू सोरेन 1980 में पहली बार सांसद चुने गये. इसके बाद उन्होंने 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 में यहां जीत हासिल की. शिबू सोरेन 3 बार राज्यसभाके लिए चुने गये.

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वह केंद्र सरकार में कोयला मंत्री रहे. शिबू सोरेन 3 बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे.

पहली बार 2 मार्च 2005 सीएम बने. दूसरी बार 27 अगस्त 2008 को मुख्यमंत्री बने. तीसरी बार दिसंबर 2009 में मुख्यमंत्री बने. हालांकि, कोई भी कार्यकाल बड़ा नहीं था.

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