झारखंड: कहीं बंद ना हो जाये स्कूलों में मिड डे मिल मिलना, मंईया सम्मान योजना का दिखने लगा साईड इफेक्ट, जानिये क्या है पूरा मामला
Jharkhand: Mid day meals in schools should not be stopped, side effects of Maniya Samman Yojana are visible, know what is the whole matter
रांची। महिलाओं के खाते में हेमंत सरकार ने भले ही 2500-2500 रुपये देने का वादा पूरा कर दिया हो, लेकिन इसकी वजह से सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजना पर पलीता लग गया है। विधवा पेंशन, विकलांग पेंशन सहित कई योजनाओं की राशि महीनों से नहीं मिली है। इधर अब स्कूलों में मिड डे मिल पर भी खतरा मंडराने लगा है। दरअसल इसकी बड़ी वजह से स्कूलों में मिड डे मिल बनाने वाली संयोजिकाओं की नाराजगी।
दरअसल रसोईया संघ इस बात से नाराज चल रहा कि एक तरफ महिलाओं को घर बैठे 2500 रुपये दिया जा रहा है, दूसरी तरफ 6 से आठ घंटे काम करने के बाद उन्हें मानदेय 2000 रुपये मिल रहा है। झारखंड राज्य विद्यालय रसोइया संघ का कहना है कि एक तरफ राज्य सरकार 18 साल से 50 साल तक की महिलाओं को घर बैठे 2500 रुपए प्रतिमाह दे रही है।
सभी सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 8वीं तक के बच्चों को मिड मील पकाने से लेकर खिलाने तक का काम करने वाली रसोइया को मानदेय के रूप में सिर्फ 2000 रुपए दिए जा रहे हैं, ‘यह उनके साथ नाइंसाफी है। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले रसोइयों के मानदेय को 2000 रुपए से बढ़ाकर 3000 रुपए किया गया था, कैबिनेट में प्रस्ताव पारित भी हो चुका है। लेकिन आज तक इसको लागू नहीं किया गया।
रसोईया संघ ने चेतावनी दी है कि मिड डे मील सिस्टम संभाल रहीं सभी 81,000 रसोइया अपने पद से सामूहिक इस्तीफा देकर मंईयां सम्मान योजना के लिए आवेदन देंगी। संघ का कहना है कि स्कूलों में मिड डे मील को संचालित करने के लिए सभी रसोइयों को सुबह 8 बजे से काम पर लगना पड़ता है। बच्चों को खिलाने और बर्तन की साफ-सफाई करते शाम के 5 बज जाते हैं।
नियम के मुताबिक 25 बच्चों पर एक रसोइया होनी चाहिए. लेकिन ज्यादातर स्कूलों में 3 से 4 रसोइया के कंधों पर 300 से ज्यादा बच्चों को मिड डे मील देने की जिम्मेदारी है। संघ का यह भी कहना है कि हर स्कूल में मिड डे मील व्यवस्था के संचालन के लिए संयोजिका को स्थानीय स्तर पर नामित किया जाता है, लेकिन संयोजिका को मानदेय के रूप में फूटी कौड़ी भी नहीं दी जाती है।