ना मंत्री पद से इस्तीफा दे रहे हैं...ना पार्टी छोड़ रहे हैं, ...आखिर क्या चल रहा है चंपाई के दिमाग में, झामुमो को डर, कहीं कार्रवाई से चुनाव में ना हो जाये नुकसान

Chmapi Soren : चंपाई सोरेन राजनीतिक कदम फूंक-फूंक कर रहे हैं, यही कारण है कि सप्ताह दिन बीत जाने के बावजूद उन्होंने अपने तक न तो जेएमएम से त्यागपत्र दिया है और न ही मंत्री पद छोड़ने के बारे में कोई फैसला लिया है। चंपाई सोरेन ने शनिवार से सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी हमलावर अंदाज में झामुमो को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है, लेकिन झामुमो की तरफ से अभी तक इस पूरे मामले पर चुप्पी ही देखी जा रही है।

इसका सीधा सा मतलब यही है कि चंपाई जितनी सतर्कता से राजनीति में कदम आगे बढ़ा रहे हैं, झामुमो भी उतनी ही शांति से उनके कदम पर नजर रख रहा है।

जानकारों की मानें तो जवाब चंपाई सोरेन की छवि पूरे इलाके में ‘कोल्हान टाइगर’ की रही है। लिहाजा जेएमएम नेताओं को भी यह डर सता रहा है कि यदि चंपाई सोरेन के खिलाफ किसी तरह की अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है, तो इसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ सकता है। यही कारण है कि जेएमएम नेताओं ने अब तक इस मामले में चुप्पी साध रखी है।

चंपाई के करीबियों का मानना है कि जेएमएम छोड़ कर किसी और दल के साथ जाने से उन्हें खास फायदा नहीं होगा। लेकिन अलग राजनीतिक दल बनाकर वे कोल्हान क्षेत्र में नए साथी के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं, तो इसका फायदा चंपाई सोरेन और सहयोगी दल को मिल सकता है।

चंपाई का कद कोल्हान क्षेत्र में काफी बड़ा है। लोग कहते हैं उनका ही प्रभाव रहा है कि वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान प्रमंडल की 14 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट पर बीजेपी जीत हासिल नहीं कर सकी। ऐसे में इस क्षेत्र में बीजेपी को एक मजबूत आदिवासी नेतृत्व की तलाश है। हालांकि कोल्हान क्षेत्र से ही पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा भी आते हैं। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की कर्मभूमि भी कोल्हान क्षेत्र में ही रही।


लेकिन फिलहाल रघुवर दास ओडिशा का राज्यपाल बनने के बाद झारखंड की राजनीति से दूर हैं। वहीं कभी इस क्षेत्र में बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे सरयू राय भी अब जेडीयू में शामिल हो गए हैं। इन राजनीतिक परिस्थितियों के बीच बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की ओर से कोल्हान क्षेत्र को लेकर विशेष रणनीति पर चर्चा की जा रही है।

चंपई सोरेन ने साफ कर दिया है कि फिलहाल उनका ध्यान कोल्हान प्रमंडल की 14 विधानसभा सीटों पर ही रहेगा। यह उनकी राजनीतिक सूझबूझ का परिचायक है। पूरे राज्य में असर डालना उनके लिए मुश्किल है, इसलिए उन्होंने अपनी क्षमता के हिसाब से फैसला लिया है।


अगर वो पूरे राज्य की बात करते तो शायद राजनीतिक तौर पर कमजोर पड़ जाते। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर हर विधानसभा क्षेत्र में चंपई सोरेन की वजह से 5 से 10 हजार वोट भी बीजेपी को मिलते हैं तो नतीजे बदल सकते हैं।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी, चंपई सोरेन के मामले में सोच-समझकर कदम रख रही है। बीजेपी, झामुमो को कोई ऐसा मौका नहीं देना चाहती जिससे उसपर पार्टी तोड़ने का आरोप लगे और पुराने नेता-कार्यकर्ता नाराज हो जाएं।


हो सकता है कि बीजेपी के इशारे पर ही चंपई सोरेन अपनी पार्टी बनाएं और चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ें। बीजेपी उनके लिए तीन या चार सीट कोल्हान में छोड़ सकती है। इससे दोनों का उद्देश्य पूरा हो जाएगा।

हेमंत मंत्रिमंडल से इस्तीफा नहीं दिया

झामुमो के सूत्रों ने यह भी बताया कि तमाम बातचीत के बावजूद, चंपई ने अभी तक हेमंत मंत्रिमंडल से इस्तीफा नहीं दिया है। एक झामुमो नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “अगर चंपई अपनी पार्टी बनाना चाहते हैं तो वह कैबिनेट से इस्तीफा क्यों नहीं दे रहे हैं? वह पद से जुड़ी सभी सुविधाओं का आनंद ले रहे हैं और साथ ही झामुमो पर दबाव बना रहे हैं और स्थिति को सौदेबाजी के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।”

सरकार से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि चंपई झामुमो कार्यकर्ताओं के बीच भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्होंने कुछ को टिकट देने का वादा किया था। एक अन्य सूत्र ने कहा, “चंपई कुछ असंतुष्ट पार्टी कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं कि वह उन्हें टिकट देंगे। वहीं, चंपई के खेमे से कुछ लोग हेमंत सोरेन के खेमे तक पहुंच रहे हैं।”

एक सूत्र ने कहा कि सभी की निगाहें अब हेमंत पर हैं, यह देखने के लिए कि वह चंपई पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं, उन्होंने अब तक सार्वजनिक रूप से कुछ भी नहीं कहा है। एक अन्य सूत्र ने कहा, “हेमंत सोरेन जेल में थे तब उन्होंने राज्य का नेतृत्व करने के लिए चंपई पर भरोसा किया इसलिए हेमंत के लिए अभी उनकी आलोचना करना और उन्हें निशाना बनाना बुद्धिमानी नहीं होगी।

Aditya
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