बागियों ने उड़ायी झारखंड में पार्टियों की नींद, सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को, बागियों को मनाने दिग्गज अब झोंक रहे ताकत

Jharkhand Election: इस बार बागियों ने भाजपा की नींद उड़ा दी है। अब तक दर्जनों वरीष्ठ नेता भाजपा छोड़ चुके हैं, जाहिर है बगावत का असर भाजपा को चुनाव में जरूर उठाना होगा।


हालांकि बागियों ने हर पार्टी की चिंता बढ़ायी है, लेकिन भाजपा की स्थिति काफी बुरी है। इसकी वजह से दूसरे पार्टियों से आये नेताओं को टिकट देना। लिहाजा चुनाव पूर्व भाजपा डैमेज कंट्रोल में जुटी है।


भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) झारखंड में अंदरूनी कलह को कंट्रोल करने के लिए अपने दिग्गज नेताओं को जिम्मेदारी दे रही है।

ताकि, टिकट नहीं मिलने से नाराज जो नेता झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) में शामिल हो गए हैं, उससे ज्यादा नुकसान ना हो। भाजपा के बडे नेता भी मान रहे हैं कि भाजपा इस बार सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी वोट में विभाजन को लेकर काफी सतर्क है।


सरकार के खिलाफ भारी रोष है और अगर यह टूटती है तो झामुमो को फायदा होगा। यही कारण है कि पार्टी हर उस नेता से संपर्क कर रही है जो नाराज़ है और चुनाव लड़ रहा है ताकि उन्हें हेमंत सोरेन सरकार को हटाने के बड़े काम के लिए अपने छोटे हितों को त्यागने के लिए राजी किया जा सके।

पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो के पूर्व नेता चंपई सोरेन और उनके बेटे बाबूलाल, ओडिशा के राज्यपाल और पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास की बहू और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को टिकट देने के भाजपा के फैसले से पार्टी के कई नेता नाराज़ हैं।


उनका तर्क है कि 13 नवंबर और 20 नवंबर को दो चरणों में होने वाले चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन में शीर्ष नेतृत्व ने प्रतिबद्ध पार्टी कार्यकर्ताओं की बजाय बाहरी लोगों को तरजीह दी है।

पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र राय, जिन्हें टिकट नहीं दिया गया था, को खुश करने के लिए भाजपा ने चुनाव प्रचार के बीच में ही उन्हें राज्य पार्टी इकाई का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. इस कदम से झारखंड में लोगों की भौहें तन गईं, क्योंकि बाबूलाल मरांडी पहले से ही पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख थे।

राय 2014 से 2019 तक कोडरमा से सांसद थे, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्हें टिकट नहीं दिया गया. इस बार वे तीन निर्वाचन क्षेत्रों से टिकट मांग रहे थे, जिसमें धनवार भी शामिल है — जहां मरांडी चुनाव लड़ रहे हैं।

पिछले हफ्ते अफवाहें उड़ीं कि राय झामुमो में जाने पर विचार कर रहे हैं, जिसके बाद चौहान और सरमा ने चुनाव के बीच में महत्वपूर्ण संगठनात्मक पद देकर उन्हें मनाने के लिए उनके घर का दौरा किया।


भाजपा राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण धनवार निर्वाचन क्षेत्र में भूमिहार समुदाय में राय के समर्थन आधार का लाभ उठाने की उम्मीद कर रही है, जहां उन्होंने 2000 और 2005 में जीत हासिल की थी।

झारखंड में पिछले विधानसभा चुनावों में, लगभग 10 सीटों पर जीत का अंतर 5,000 वोटों से कम था, जबकि उनमें औसत अंतर 2,349 वोट था. ये सीटें थीं देवघर, गोड्डा, कोडरमा, सिमडेगा, नाला, जामा, मांधु, बाघमारा और जरमुंडी। इस बार मुकाबला और करीब हो सकता है।

कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय है, ऐसे में एक-एक वोट पर हर पार्टी की नजर है। हालांकि देखना होगा कि बागियों को मनाने में पार्टी कितनी सफल हो सकती है।

Aditya
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