"नाम संथाली टोला, लेकिन एक भी संथाल परिवार नहीं" कैसे खत्म हो रहा है आदिवासियों के गढ़ में भूमिपुत्रों का अस्तित्व, चंपाई सोरेन ने उठाये सवाल

रांची। संथालपरगना के डेमोग्राफी चेंज को लेकर अब पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन भी हमलावर हो गये हैं। चंपाई सोरेन ने भी हेमंत सरकार पर हमला बोल दिया है। सरकार में रहते हुए भी चंपाई सोरेन ने संथालपरगना में आदिवासियों के असितत्व के संकट का मुद्दा उठा चुके थे, अब भाजपा में शामिल होने के बाद उन्होंने सरकार को पूरी तरह से कटघरे में खड़ा कर दिय है।

चंपाई सोरेन ने कहा है कि संथाल-परगना में लगातार हो रही बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण आदिवासी समाज के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है।

उन्होंने कहा है कि वहाँ दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां आदिवासी खोजने पर भी नहीं मिल रहे। उदाहरण के तौर पर, पाकुड़ के जिकरहट्टी स्थित संथाली टोला में अब कोई संथाल परिवार नहीं रहता। इसी प्रकार मालपहाड़िया गाँव में आदिम जनजाति का कोई सदस्य नहीं बचा है।


आखिर वहाँ के भूमिपुत्र कहाँ गए? उनकी जमीनों, उनके घरों पर अब किसका कब्जा है? समाज के स्थानीय लोगों ने मुझे बताया कि बरहेट के गिलहा गाँव में एक आदिवासी परिवार की जमीन पर जबरन कब्रिस्तान बनाया गया है।

ऐसी घटनाएँ कई जगह हुई हैं। आप खुद देखिए कि वीर भूमि भोगनाडीह एवं उसके आस-पास कितने आदिवासी परिवार बचे हैं? बाबा तिलका मांझी एवं वीर सिदो-कान्हू ने जल, जंगल व जमीन की लड़ाई में कभी भी विदेशी अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके, लेकिन आज उनके वंशजों की जमीनों पर घुसपैठिए कब्जा कर रहे हैं।

हमारी माताओं, बहनों व बेटियों की अस्मत खतरे में है। हमारे लिए यह राजनैतिक नहीं, बल्कि सामाजिक मुद्दा है। अगर हम इस विषय पर खामोश रहे, तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी।

Aditya
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