मोरबी पुल हादसा: 7 महीने तक चला मरम्मत, 5 दिन में हो गया धाराशाही…कंपनी पर FIR.. जानिए इस पुल का ऐतिहासिक महत्व…
गुजरात मच्छु नदी पर केबल पुल के हादसे में अब तक 140 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। कई लोगों की स्थिति गंभीर बनी हुई है। वहीं राहत की बात यह है कि हादसे में अब तक 177 लोगों को बचाया गया है। अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार पुल चालू करने से लेकर अब तक कई खामियां सामने आई है। जिस कारण पुल बनाने वाली कंपनियां पर उंगली उठ रही है।
7 महीने से था बंद 5 दिन में हो गई धाराशायी
पुल बनाने बनाने वाली निजी कंपनी 7 महीने पूर्व से मरम्मत का कार्य कर रही थी। गुजराती नववर्ष को देखते हुए 5 दिन पहले जनता के लिए फिर दोबारा खोला गया था। बड़ी बात यह है कि पूर्व को नगर निगम का फिटनेस प्रमाण पत्र भी अभी नहीं मिला था और इसे आम लोगों के लिए खोल दिया गया।
काफी पुराना ऐतिहासिक था यह पुल
मोरबी शहर में बना हैंगिंग ब्रिज करीब एक सदी से भी ज्यादा पुराना था। हादसे से पहले पुल में करीब 400 से अधिक लोग एक साथ चढ़ गए थे। मोरबी नगरपालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह जाला ने कहा कि पुल को 15 साल के लिए संचालन और रखरखाव के लिए ओरेवा कंपनी को दिया गया था। इस साल मार्च में इसे मरम्मत के लिए जनता के लिए बंद कर दिया गया था। 26 अक्टूबर को गुजराती नववर्ष दिवस पर मरम्मत के बाद से फिर से खोल दिया गया। हालांकि स्थानीय नगरपालिका ने कोई प्रमाण पत्र नहीं दिया था। हादसे के बाद गुजरात सरकार ने कंपनी के खिलाफ केस दर्ज किया है। कंपनी के खिलाफ धारा 304, 308 और 114 के तहत केस दर्ज किया है।
नई टेक्नोलॉजी का चमत्कार था मोरबी पुल
जिला कलेक्टर की वेबसाइट पर पुल के विवरण के अनुसार यह एक इंजीनियरिंग चमत्कार था। यह पुल मोरबी के शासकों की प्रगतिशील और वैज्ञानिक प्रकृति को दर्शाने के लिए बनाया गया था। सर बाघजी ठाकोर ने 1922 तक मोरबी पर शासन किया। वह औपनिवेशिक प्रभाव से प्रेरित थे और उन्होंने पुल के निर्माण करने का फैसला किया। जो उस समय का कलात्मक और तकनीक पर आधारित था। इसके अनुसार पुल निर्माण का उद्देश्य दरबार गढ़ पैलेस को नजरबाग पैलेस से जोड़ना था। कलेक्ट्रेट वेबसाइट से प्राप्त जानकारी के अनुसार पुल 1.25 मीटर चौड़ा था और इसकी लंबाई 233 मीटर थी इसके अनुसार पुल का उद्देश्य यूरोप में उन दिनों उपलब्ध नवीनतम तकनीक का उपयोग करके मोरबी को एक विशिष्ट पहचान देना था।
सिर्फ कंपनी पर ही अंगुली क्यों
हादसे तो हो गए,प्रशासन राहत कार्य में जुटी है।सरकार ने कंपनी के खिलाफ केस भी दर्ज कर दिया परंतु जांच का विषय ये भी है सिर्फ कंपनी ही इस हादसे के लिए जिम्मेदार कैसे? क्योंकि जब फिटनेस प्रमाण पत्र मिला ही नहीं तो इतने सारे लोगों को एकसाथ पुल पर चढ़ने की अनुमति दी किसने? कागजी खानापूर्ति तो होगी, सरकार जांच का आदेश देकर अपना पल्ला झाड़ लेगी परंतु उन परिवार का क्या होगा जिसकी मांग उजड़ गई, कोख सुनी हो गई, जिसने अपने मां बाप खो दिए उन सब का दर्द खत्म कैसे होगा? ये सवाल तो बना रहेगा?