नक्सली की बेटी ने की बोर्ड परीक्षा पास : माता-पिता दोनों के सर पर है इनाम, जानिये बंदूकों के साये में कैसे की पढ़ाई ..

बस्तर। नक्सली की बेटी ने बोर्ड परीक्षा पास कर नया चमत्कार कर दिया। 10वीं बोर्ड की परीक्षा में नक्सली की बेटी ने 55 फीसदी अंक हासिल किया है। ये बात यहां गौर करने वाली है कि जिस बेटी ने बोर्ड परीक्षा पास की है, उसके माता-पिता दोनों पर पुलिस ने ईनाम घोषित कर रखा है। मामला छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल प्रभावित नारायणपुर का है। बोर्ड परीक्षा पास करने वाली ये छात्रा इन दिनों खूब चर्चाओं में है। जानकारी के मुताबिक सोनवरम सलाम वर्तमान में अबूझमाड़ के अकाबेड़ा और कुतुल क्षेत्रों में एक माओवादी गठन में कमांडर के रूप में सक्रिय है, जबकि उसकी पत्नी एक निचले पायदान की कैडर है. उन्होंने कहा कि दंपति के सिर पर नकद इनाम भी है।

कई मुश्किलों के बाद छात्रा छत्तीसगढ़ हाई स्कूल सर्टिफिकेट बोर्ड एग्जाम 2023 में बैठी और छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा बुधवार को घोषित 10वीं बोर्ड परीक्षा में 54.5 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। छत्तीसगढ़ बोर्ड 10वीं कक्षा की परीक्षा पास करना उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखते हुए यह एक असाधारण उपलब्धि है। अब वह डॉक्टर बनकर अपने पैतृक जिले के आदिवासियों की सेवा करना चाहती हैं। उसका छोटा भाई आकाबेड़ा गांव के रामकृष्ण मिशन आश्रम स्कूल में 9वीं क्लास में पढ़ता है।

नक्सली दंपति की बेटी छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के एनमेटा बकुलवाही गांव की रहने वाली हैं। राजधानी से करीब 300 किलोमीटर से दूर पर स्थित है। छात्रा के पिता सोनवरम सलाम और मां आरती सक्रिय नक्सली हैं। बंदूकों के साये में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, लेकिन उनकी लड़की को अपने से दूर रहकर पढ़ाई करने से रोक नहीं पाया। नारायणपुर कलेक्टर अजीत वसंत ने भी भविष्य में हर तरह की मदद करने बात कही है।

'साहेब! मेरा सब कुछ लूट लिया' आधी रात फरियादी बनकर थाना पहुंचे एसपी, थानेदार ने किया ये काम…

छात्रा ने नारायणपुर से पहली क्लास से 8वीं क्लास तक की पढ़ाई तो किसी तरह कर ली। लेकिन जरूरी डॉक्यूमेंट्स न होने की वजह से पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी। छात्रा ने बताया, उसने कुतुल गांव (नारायणपुर) में रामकृष्ण मिशन विवेकानंद विद्या मंदिर में कक्षा 1 से 5वीं तक और नारायणपुर शहर में रामकृष्ण मिशन विवेकानंद विद्यापीठ में कक्षा 6वीं से 8वीं तक की पढ़ाई की। इसके बाद, वो पढ़ाई छोड़ दी और अपने गांव एनमेटा चली गई क्योंकि उसके पास जाति और निवास प्रमाण पत्र नहीं थे।

18 वर्षीय छात्रा को अनुसूचित जनजाति (एसटी) प्रमाण पत्र और अधिवास प्रमाण पत्र नहीं मिल सका है, जो उसे मड़िया जनजाति के सदस्य के रूप में मान्यता देता है । छात्रा के लिए आगे की पढ़ाई करना इतना भी आसान नहीं था. रिश्तेदार के घर की छत तो मिल गई लेकिन संघर्ष अभी भी जारी था. छात्रा ने बताया है कि उसे स्कूल आने-जाने के दौरान रोजाना करीब 4 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था. फिर भी वह खुश थी। रिजल्ट के बाद छात्रा बेहद खुश है।

Related Articles

close