एक थप्पड़, लेकिन नहीं सह सकती– अनुभव सिन्हा ने बताया कैसे बनी थप्पड़ की कहानी
A slap, but I can't bear it- Anubhav Sinha told how the story of Thappad was made

Bollywood movie news: अनुभव सिन्हा एक ऐसे फिल्म निर्माता हैं जो अपनी सामाजिक मुद्दों पर आधारित दमदार फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। उनकी फिल्मों में समाज का आईना दिखाने का साहस होता है।
थप्पड़ से लेकर आर्टिकल 15 तक, उनकी फिल्मों ने पर्दे से परे जाकर समाज में चर्चाओं को जन्म दिया है। उनकी सबसे प्रभावशाली फिल्मों में से एक थप्पड़ है, जो महिलाओं की गरिमा और घरेलू हिंसा के मुद्दे को फिर से परिभाषित करती है।
*हाल ही में एक इण्टरव्यू के दौरान, अनुभव सिन्हा ने ऐसी कहानियों को दिखाने के महत्व के बारे में बात की, जो अक्सर “छोटी” लगती हैं लेकिन समाज पर गहरी छाप छोड़ती हैं।
उन्होंने बताया* कि थप्पड़ बनाने का विचार उन्हें एक साधारण लेकिन गहरे अर्थ वाले सवाल से आया – अगर एक पति अपनी पत्नी को पहली बार थप्पड़ मारे, तो क्या होगा? यह घटना भले ही छोटी लगे, लेकिन यह एक बड़े मुद्दे की शुरुआत बन सकती है — दुर्व्यवहार की शुरुआत।
*इस फिल्म के पीछे की प्रेरणा के बारे में याद करते हुए, अनुभव सिन्हा ने कहा*
एक दिन, मैं और तापसी एक फ्लाइट में थे। मैंने उससे पूछा, ‘हम छोटी घटनाओं पर फिल्में क्यों नहीं बनाते?
इसके बाद उन्होंने एक ऐसा उदाहरण दिया जिसने थप्पड़ की कहानी को आकार दिया:
सोचिए, एक पति अपनी पत्नी को पहली बार थप्पड़ मारे। वह महिला जिसने अपनी पूरी जिंदगी उस आदमी को समर्पित कर दी है, उस एक पल में उसे क्या महसूस होगा? क्या यह एक छोटी बात है?
तब तापसी पन्नू ने तुरंत जवाब दिया, अगर आप यह फिल्म बनाएंगे, तो मैं जरूर करूंगी।
भारत जैसे देश में, जहां कई महिलाएं इस तरह की घटनाओं का अनुभव करती हैं या गवाह बनती हैं, थप्पड़ दर्शकों के दिलों को गहराई से छू गई। यह फिल्म सिर्फ एक थप्पड़ की बात नहीं कर रही थी — यह एक महिला की गरिमा और आत्मसम्मान के बारे में थी। फिल्म ने घरों, कार्यस्थलों और मीडिया में बहस छेड़ दी, यह साबित करते हुए कि सिनेमा बदलाव का एक सशक्त माध्यम हो सकता है।
थप्पड़ हमें यह याद दिलाती है कि कोई भी अपमानजनक हरकत, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न लगे, उसे सामान्य नहीं बनाया जाना चाहिए। अनुभव सिन्हा की दृष्टि और तापसी पन्नू के बेखौफ प्रदर्शन ने इस फिल्म को केवल एक कहानी नहीं बल्कि एक एहसास बना दिया।
यह फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास में महिलाओं की गरिमा, आत्म-सम्मान और घरेलू हिंसा पर एक महत्वपूर्ण बातचीत की शुरुआत बनकर हमेशा याद रखी जाएगी।