“शादी से इंकार करना, खुदकुशी के लिए उकसाना नहीं”…हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला, लड़के के खिलाफ मुकादमा किया रद्द

इलाहाबाद। आत्महत्या मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि शादी करने से इनकार करना खुदकुशी के लिए उकसाने का अपराध नहीं है। यह कहते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी में चल रहा आपराधिक केस रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 और धारा 107 को साथ पढ़ने से यह स्पष्ट है कि खुदकुशी के लिए उकसाने के अपराध में पहली शर्त यह है कि व्यक्ति को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया जाए, जबकि दूसरी शर्त है कि इस कार्य को करने के लिए एक या उससे अधिक लोग ऐसे षड्यंत्र में शामिल हो।

उस षड्यंत्र के तहत किसी अवैधानिक कार्य को करने का इरादा होना चाहिए। यह आदेश जस्टिस नीरज तिवारी ने अंबेश मणि त्रिपाठी की धारा-482 के तहत दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।अंबेश मणि त्रिपाठी की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने याची के अधिवक्ता अभिनव गौर व अन्य को सुनकर दिया है। दरअसल, वाराणसी के भेलूपुर थाने में खुदकुशी के लिए दुष्प्रेरित करने और दहेज की मांग पूरी न होने पर शादी तोड़ने के आरोप में FIR दर्ज की गई थी।

हालांकि खुदकुशी करने वाली लड़की ने नोट में याची को अपनी मौत के लिए दोषी नहीं माना था। मगर, मृतका के पिता ने खुदकुशी के लिए उकसाने के आरोप में FIR दर्ज कराई थी। उन्होंने कहा कि दहेज की मांग पूरी न करने पर सगाई से पहले शादी तोड़ दी। इसके चलते मेरी बेटी ने खुदकुशी कर ली।आरोप है कि उसने युवती से शादी तय होने के बाद शादी करने से इनकार कर दिया। जिसकी वजह से लड़की ने खुदकुशी कर ली।

लड़की के परिवार वालों ने अंबेश पर खुदकुशी के लिए उकसाने और दहेज मांगने का मुकदमा दर्ज कराया। इसमें पुलिस ने जांच के बाद आरोप पत्र अदालत में दाखिल कर दिया. आरोप पत्र को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। कहा गया कि याची के खिलाफ खुदकुशी के लिए उकसाने का कोई अपराध नहीं बनता है. उस पर शादी से इनकार करने के अलावा और कोई आरोप नहीं है. मृतका के परिवार वालों के बयान और उसके सुसाइड नोट में भी ऐसा कुछ नहीं है. जिससे यह कहा जा सके कि उसने खुदकुशी के लिए उकसाया है।

HPBL Desk
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