Santan Saptami : संतान सप्तमी पर आज 150 साल बाद बन रहा विशेष संयोग, निःसंतान महिलाओं के लिए खास है ये व्रत

व्रत त्योहार : हिन्दू व्रत-त्योहारों में संतान सप्तमी को एक जरूरी व्रत माना जाता है. इसे हर मां नए संतान प्राप्ति के लिए, उसकी तरक्की और उसकी लंबी उम्र के लिए करती हैं. इस व्रत को हर वर्ष भाद्रपद (Bhadrapad) महीने की शुक्लपक्ष (Shukla Paksha) के सप्तमी (Saptami) तिथि के दिन किया जाता है. कई लोग इसे मुक्ताभरण व्रत (Muktabharan Vrat) और ललिता सप्तमी व्रत (Lalita Saptami Vrat) के नाम से भी जानते हैं.

संतान सप्तमी तिथि और मुहूर्त

ये व्रत हर वर्ष भाद्रपद महीने की शुक्लपक्ष के सप्तमी तिथि के दिन रखा जाता है. इस साल सप्तमी तिथि 22 सितंबर को पड़ रही है. भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 21 सितंबर को दोपहर 2:14 बजे शुरू होकर 22 सितंबर 2023 को दोपहर 1:35 बजे खत्म होगी। उदया तिथि के अनुसार 22 सितंबर को व्रत रखा जाएगा.

ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:35 से सुबह 5:22 तक

अभिजित मुहूर्त: सुबह 11:49 से दोपहर 12:38 तक

अमृत काल : सुबह 6:47 से सुबह 8:23 तक

संतान सप्तमी का व्रत क्यों किया जाता हैं (Santan Saptami Mahatva)

यह व्रत स्त्रियां पुत्र प्राप्ति की इच्छा हेतु करती हैं. यह व्रत संतान के समस्त दुःख, परेशानी के निवारण के उद्देश्य से किया जाता हैं. संतान की सुरक्षा का भाव लिये स्त्रियाँ इस व्रत को पुरे विधि विधान के साथ करती हैं. यह व्रत पुरुष अर्थात माता पिता दोनों मिलकर संतान के सुख के लिए रखते हैं.

संतान सप्तमी व्रत विधि (Santan Saptami Vrat Vidhi)

  • भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान कर माता-पिता संतान प्राप्ति के लिए अथवा उनके उज्जवल भविष्य के लिए इस व्रत का प्रारंभ करते हैं.
  • यह व्रत की पूजा दोपहर तक पूरी कर ली जाये, तो अच्छा माना जाता हैं.
  • प्रातः स्नान कर, स्वच्छ कपड़े पहनकर विष्णु, शिव पार्वती की पूजा की जाती हैं.

दोपहर के वक्त चौक बनाकर उस पर भगवान शिव पार्वती की प्रतिमा रखी जाती हैं.

इनकी पूजा कर उन्हें चढ़ाया गया प्रसाद ही ग्रहण किया जाता है, और पूरे दिन व्रत रखा जाता है.

संतान सप्तमी पूजा विधि (Santan Saptami Puja Vidhi)

  • शिव पार्वती की उस प्रतिमा का स्नान कराकर चन्दन का लेप लगाया जाता हैं. अक्षत, श्री फल ( नारियल), सुपारी अर्पण की जाती हैं. दीप प्रज्वलित कर भोग लगाया जाता हैं.
  • संतान की रक्षा का संकल्प लेकर भगवान शिव को डोरा बांधा जाता हैं..
  • बाद में इस डोरे को अपनी संतान की कलाई में बाँध दिया जाता हैं.
  • इस दिन भोग में खीर, पूरी का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं. भोग में तुलसी का पत्ता रख उसे जल से तीन बार घुमाकर भगवान के सामने रखा जाता हैं.
  • परिवार जनों के साथ मिलकर आरती की जाती हैं. भगवान के सामने मस्तक रख उनसे अपने मन की मुराद कही जाती हैं.
  • बाद में उस भोग को प्रसाद स्वरूप सभी परिवार जनों एवं आस पड़ोस में वितरित किया जाता हैं.

संतान सप्तमी व्रत कथा (Santan Saptami Vrat Katha)

पूजा के बाद कथा सुनने का महत्व सभी हिन्दू व्रत में मिलता हैं. संतान सप्तमी व्रत की कथा पति पत्नी साथ मिलकर सुने, तो अधिक प्रभावशाली माना जाता हैं. इस व्रत का उल्लेख श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर के सामने किया था. उन्होंने बताया यह व्रत करने का महत्व लोमेश ऋषि ने उनके माता पिता (देवकी वसुदेव) को बताया था. माता देवकी के पुत्रो को कंस ने मार दिया था, जिस कारण माता पिता के जीवन पर संतान शोक का भार था, जिससे उभरने के लिए उन्हें संतान सप्तमी व्रत करने कहा गया.

HPBL Desk
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