सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण में हेमंत सोरेन की मौजूदगी के क्या है सियासी मायने, 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव पर नजर तो नहीं…
रांची। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत ना सिर्फ कांग्रेस के लिए संजीवनी है, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकजुटता का रूटमैप भी है। शपथग्रहण समारोह में विपक्षी नेताओं को जिस तरह से आमंत्रित किया, वो सिर्फ एक सामान्य औपचारिकता भर नहीं था, बल्कि एक सियासी संकेत थे। शपथ ग्रहण में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, तमिलनाडू के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, शरद पवार, नीतीश कुमार, फारुक अब्दुल्ला जैसे नेताओं की मंच पर मौजूदगी एक साफ संकेत था कि 2024 में मोदी से मुकाबला के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल एक साथ एक मंच पर भी आ सकते हैं।
कर्नाटक सरकार के शपथ ग्रहण में हेमंत सोरेन के अलावे कई अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए। शपथ ग्रहण के मंच पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन राज्स्थान के मुख्यमंत्री के साथ बैठे थे। वहीं पास में राहुल गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी बैठे थे। जाहिर है 2024 के पहले विपक्षी एकता का ये एक बड़ा पॉलटिकल शो, जिसके जरिये देश भर में कांग्रेस ने सियासी इशारा कर दिया है।
13 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए थे. कांग्रेस ने 135 सीटों, बीजेपी ने 66 सीटों और जेडीएस ने 19 सीटों पर जीत हासिल की है. कांग्रेस में सीएम पद की दावेदारी को लेकर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच कई दिन तक गतिरोध जारी रहा था. हालांकि कई दिनों तक चली बैठक और आलाकमान की समझाइश के बाद दोनों नेताओं में सहमति बन सकी।
झारखंड के मुख्यमंत्री का मंच पर होना सिर्फ लोकसभा के पहले की चुनावी एकता नहीं, बल्कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले की भी सियासी गठबंधन को मजबूत करने की कड़ी है। पिछले चुनाव में झारखंड में झामुमो ने राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था, नतीजा सरकार बनी। वहीं, बीजेपी सिर्फ 25 सीटों पर ही ठहर गयी।