झारखंड में नौकरी की क्या है रेट लिस्ट ? बाबूलाल मरांडी ने बताया किस ग्रेड की नौकरी का क्या है रेट, 20 लाख बेस प्राइस….
What is the rate list of jobs in Jharkhand? Babulal Marandi told what is the rate of which grade job, 20 lakh base price....
रांची। झारखंड में युवा वोटर इस बार झारखंड के सिंहासन का फैसला करने वाले हैं। लिहाजा एनडीए और इंडी दोनों गठबंधन ने युवाओं को फोकस किया है। खाकर नौकरी और रोजगार के मुद्दे पर झारखंड की दोनों प्रमुख पार्टी झामुमो और भाजपा दोनों का फोकस है। दोनों पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र में नौकरी देने की बात को भी प्रमुखता से रखा है। चुनाव के पहले से ही भाजपा युवाओं की बेरोजगारी और पेपर लीक जैसे प्रकरणों को लेकर हेमंत सरकार पर हमलावर रही है। अब चुनाव में वो सीजीएल परीक्षा को लेकर हेमंत सोरेन पर गंभीर आरोप आरोप लगा रही है।
हालांकि भाजपा पहले ही ये दावा कर चुकी है कि अगर सरकार भाजपा की बनी, तो सीजीएल परीक्षा को रद्द कर दिया जायेगा और नये सिरे से परीक्षा ली जायेगी। भाजपा को यकीन है कि ये फैसला युवाओं को उनकी तरफ आकर्षित करेगा। बाबूलाल मरांडी ने सोशल मीडिया पर परीक्षा के पेपर लीक और नौकरी बेचे जाने को लेकर हेमंत सरकार पर तीखा कटाक्ष करते हुए पोस्ट किया है।
बाबूलाल मरांडी ने लिखा है कि पढ़ने वाले पढ़ते रहेंगे पैसे वाले बढ़ते रहेंगे। (हेमंत सोरेन का युवाओं के नाम संदेश) हैरान न हों, झारखंड में पिछले 5 सालों से हेमंत सोरेन के नेतृत्व में ऐसे ही पैसे लेकर नौकरी देने का व्यापार चल रहा है। हाल यह है कि प्रत्येक नौकरी के लिए बोली लगाई जाती है, छोटी सी छोटी नौकरी का भी बेस प्राइस 20 लाख रुपए है। 20 लाख रुपए से बोली लगनी शुरू होती है, और फिर सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को नौकरी मिल जाती है।
इतना ही नहीं हर विभाग और हर पद के लिए अलग अलग बोली लगती है, जैसा पद वैसी बोली। खबर तो यह भी है कि A ग्रेड की नौकरी के लिए 1/2 करोड़ रुपए तक भी लिए जा रहे हैं। सूत्रों से यह भी पता चला है कि जिसका बैग सबसे ज्यादा भारी होता है, उसको नियुक्ति के बाद मनचाही पोस्टिंग में विशेष रियायत भी दी जाती है।
गलती से अगर बोली लगने के बाद भी कुछ पद खाली रह जाते हैं, तो उसके लिए भी पैरवी शुरू हो जाती है, और फिर पैरवी के आधार पर नियुक्तियां बांटी जाती है। ‘पैसे लाओ-नौकरी पाओ’ का यह खेल झारखंड की प्रत्येक परीक्षाओं में चला है और चल भी रहा है। पिछले 5 सालों में एक भी ऐसी परीक्षा आयोजित नहीं हो सकी है जो निष्पक्ष और पारदर्शी हो, यही नहीं पिछले 5 सालों में एक भी ऐसी नियुक्ति नहीं की गई जिसमें पैसों का लेन देन न किया गया हो।