झारखंड में BJP को क्यो लगा झटका: 2019 से बुरी स्थिति क्यों हो गयी भाजपा की, जानिये क्यों फंस गया पांच सीटों पर भाजपा का पेंच ?

Why did BJP get a shock in Jharkhand: Why has BJP's situation become worse since 2019, know why BJP got stuck on five seats?

रांची। इस बार का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए अप्रत्याशित रहा है। भाजपा का जो गढ़ था, वो गढ़ इस चुनाव में टिक नहीं सका। 2019 में झारखंड में भाजपा ने 90 के स्ट्राइक रेट से जिन सीटों पर जीत दर्ज की थी, वो सीट इस बार रेत की तरह फिसल गया। भाजपा को इस चुनाव में 3 सीटों का नुकसान हुआ है। पिछली बार एनडीए ने 12 सीटें जीती थी, लेकिन इस बार वो 9 पर आ गयी है। हालांकि अगर पिछले 10 साल के रिकार्ड को देखें तो एनडीए के हाथ से 5 सीटें फिसली है। जो सीटें भाजपा के हाथ से निकली, उनमें दुमका, खूंटी, सिंहभूम, राजमहल और लोहरदगा की सीट है।

भाजपा को इस चुनाव में 2019 के भारपायी की उम्मीद थी, लेकिन खूंटी और दुमका से भाजपा को बड़ा झटका लग गया। सिंहभूम से गीता कोड़ा को दल बदल कराने का जो दांव भाजपा ने खेला था, वो दांव भी फेल हो गया। सबसे ज्यादा चौकाने वाला परिणाम खूंटी का रहा, जहां अर्जुन मुंडा पूरे चुनाव में ही मुकाबले में नहीं दिखे। आलम ये हुआ कि उन्हें 1 लाख से ज्यादा वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा।

गीता कोड़ा के लिए प्रधानमंत्री मोदी की सभा भी काम नहीं आ पायी। उन्हें भी डेढ़ लाख के करीब वोट से हार का मुंह देखना पड़ा। पिछली बार गीता कोड़ा कांग्रेस की टिकट पर जीती थी, लेकिन इस बार भाजपा में शामिल होना वोटरों को रास नहीं आया। गीता कोड़ा ने इस चुनाव में काफी मेहनत भी किया था, लेकिन जोबा मांझी के खिलाफ वो नहीं चल पायी।

दुमका सीट पर भाजपा की हार उसके ओवर कांफिडेंस का भी नतीजा है। जिस तरह के प्रत्याशी के ऐलान के बाद मौजूदा सांसद का टिकट बदलकर सीता सोरेन को दिया गया, वो फैसला बिल्कुल गलत साबित हुआ। परिवार के खिलाफ सीता सोरेन का बोलना भी दुमका की जनता को पसंद नहीं आया। दूसरी तरफ से दुमका सीट पर नलिन सोरेन को पार्टी से वाफादारी का इनाम मिला और उन्होंने जीत हासिल कर ली। आदिवासी वोटर पूरी तरह से झामुमो के साथ ही खड़ा रहा। जामताड़ा और शिकारीपाड़ा से नलिन सोरेन का काफी लीड मिली।

लोहरदगा सीट से इस बार प्रत्याशी बदलना भाजपा को महंगा पड़ गया। यहां से भाजपा ने सुदर्शन भगत की वजह से समीर उरांव को टिकट दिया था। पार्टी का ये दांव उलटा पड़ गया। इस सीट पर चमरा लिंडा ने निर्दलीय ताल ठोंकी थी। पहले ये लग रहा था कि जातिगत वोटों का ध्रुवीकरण होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। चमरा लिंडा को गुमला और बिशुनपुर जैसे बेल्ट से भी वोट नहीं मिला, जिसका नुकसान भाजपा को हुआ। वोट नहीं बंटने पर इसका सीधा फायदा सुखदेव भगत को हो गया।

राजमहल सीट पर विजय हांसदा एक बार फिर चुने गये। 20 साल से राजमहल भाजपा के लिए अभेद किला साबित हो रहा है। इस बार फिर झामुमो अपने इस गढ़ को बचाने में कामयाब रही। भाजपा के ताला मरांडी को यहां शिकस्त खानी पड़ी। लोबिन हेम्ब्रम के चुनाव मैदान में उतरने के बाद यहां का मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया था। चुनाव के पहले सीएए और एनआरसी की दांव राजमहल सीट के लिए बड़ा फैक्टर साबित हुआ। भाजपा के साथ मुस्लिम वोटर नहीं दिखा। लोबिन हेम्ब्रम इस चुनाव को ज्यादा प्रभावित नहीं कर सके, जिसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा।

HPBL Desk
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