कल्पना सोरेन अनुसूचित जनजाति सुरक्षित सीट से क्यों नहीं लड़ पायेगी चुनाव, हेमंत खुद भी तो छोड़ सकते थे बरहेट की सीट, लेकिन गांडेय ही क्यों… ?

रांची। कल्पना सोरेन को मुख्यमत्री बनाने की अटकलों के बीच एक सवाल सियासी तौर पर खूब उठ रहा है, कि आखिर गांडेय को ही JMM ने इस्तीफा देने के लिए चुना। अगर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी होती है और उन्हें सजा सुनायी जाती है तो जाहिर है मुख्यमंत्री का भी विधानसभा सीट खाली हो जाती, ऐसे में मुख्यमंत्री, खुद की भी बरहेट सीट से कल्पना सोरेन को चुनाव लड़वा सकते थे। या खुद भी हेमंत सोरेन बरहेट विधानसभा से इस्तीफा देकर सीट को खाली कर सकते थे, लेकिन ऐसा क्यों नहीं किया गया ?
झारखंड में झामुमो, राजद और कांग्रेस का गठबंधन है। साथ ही लेफ्ट का सहयोग भी है। सियासत के जानकार कहते हैं कि सीएम हेमंत सोरेन कभी भी त्यागपत्र दे सकते हैं. इसे लेकर कई सवाल सोशल मीडिया में लगातार उठ रहे हैं। हालांकि इसका जितना जवाब राजनीतिक है, उतना ही कानूनी भी…। इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें सबसे पहले ये जानना होगा, कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन की परिवारिक पृष्ठभूमि क्या है।
कल्पना सोरेन उड़ीसा की रहने वाली है
दरअसल कल्पना सोरेन झारखंड की नहीं उड़ीसा की रहने वाली है। कल्पना मुर्मू सोरेन उड़ीसा के मयूरभंज की रहने वाली है। वो आदिवासी परिवार की तो हैं, लेकिन चूंकि वो दूसरे राज्य की मूल निवासी है, लिहाजा उन्हें झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। ऐसे में अगर वो मुख्यमंत्री बनायी जाती है तो उन्हें छह महे के भीतर विधानसभा की सदस्यता लेनी होगी। उनके पति हेमंत सोरेन फिलहाल बरहेट विधानसभा सीट से विधायक हैं, जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। कल्पना सोरेन ओड़िशा की रहने वाली है, लिहाजा वो झारखंड की आदिवासी नहीं कहलायेगी, इसलिए वो पति द्वारा बरहेट की सीट छोड़ने के बावजूद बरहेट सुरक्षित सीट से चुनाव नहीं लड़ पायेंगी।
…तो फिर गांडेय ही क्यों चुना
गांडेय झारखंड की एक ऐसी विधानसभा सीट है, जो सुरक्षित सीट नहीं होते हुए भी झामुमो के लिए अभेद किला है। आदिवासी और मुस्लिम वोटरोंकी बहुलता वाली इस सीट में जीत काफी आसान है। सरफराज अहमद 2005 में राजद से इस सीट से चुनाव लड़े थे लेकिन झामुमो के सालखन सोरेन ने उन्हें हरा दिया था। 2009 में सरफराज अहमद कांग्रेस से ही चुनाव लड़े और उन्होंने 2005 की हार का बदला सालखन सोरेन से ले लिया था। 2014 में सरफराज अहमद कांग्रेस की टिकट पर मैदान में उतरे थे, लेकिन मोदी लहर में भाजपा के जेपी वर्मा ने हरा दिया। 2019 के चुनाव में यह सीट गठबंधन के तहत झामुमो के खाते में आयी, तो सरफराज अहमद कांग्रेस छोड़कर झामुमो में आ गये और जीत दर्ज की।