हेमंत सोरेन की कैसे हुई रिहाई? कोर्ट में किस दलील से जमानत हुई पक्की, जानिये जमानत को लेकर कोर्ट ने क्या कहा...

By :  HPBL
Update: 2024-06-29 01:33 GMT

रांची। हेमंत सोरेन की रिहाई के बाद अब क्या होगा? ED की गिरफ्त में फंसे पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पांच महीने बाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गयी। अब इस मामले में हर किसी के जेहन में एक ही सवाल है? …कि अब आगे क्या होगा। ये राहत स्थायी है या फिर अस्थायी। जानकार बताते हैं कि अभी हेमंत सोरेन की राह उतनी आसान नहीं है, जितनी की समझी जा रही है। ईडी के पास अभी भी हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करने का रास्ता बचा है। जाहिर है अगर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटा, तो हेमंत को फिर से जेल जाना पड़ सकता है।

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ठीक उसी तरह, जैसा की अरविंद केजरीवाल के साथ हुआ। हेमंत सोरेन के मामले में पीएमएल की धारा 45 को जमानत का आधार बनाया गया है। हेमंत सोरेन की जमानत का फैसला न्यायमूर्ति रोंगोन मुखोपाध्याय की अध्यक्षता वाली एकल पीठ ने दिया। हेमंत सोरेन के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दलील दी कि ईडी ने उन्हें झूठा फंसाया है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को शांति नगर, बरगाइन, रांची में 8.86 एकड़ भूमि के अधिग्रहण और कब्जे के साथ-साथ 'अपराध की आय' से संबंधित होने के रूप में सीधे या परोक्ष रूप से शामिल नहीं किया गया है।

अदालत ने आश्चर्य व्यक्त किया कि ये लोग इस भूमि को कैसे खरीद सकते थे, क्योंकि यह "बकास्त भूइनहरी" भूमि थी, जो छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम की धारा 48 के तहत गैर-अहस्तांतरणीय है। अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय के इस दावे की भी आलोचना की कि उसके समय पर हस्तक्षेप ने भूमि के अवैध अधिग्रहण को रोका, यह ध्यान में रखते हुए कि भूमि कथित तौर पर 2010 से ही याचिकाकर्ता द्वारा अधिग्रहीत और कब्जे में थी, जैसा कि धारा 50 पीएमएलए, 2002 के तहत दर्ज कुछ बयानों के अनुसार था।

कोर्ट ने ये भी कहा है कि किसी भी रजिस्टर/राजस्व रिकॉर्ड में उक्त भूमि के अधिग्रहण और कब्जे में याचिकाकर्ता की सीधी संलिप्तता का कोई प्रमाण नहीं है। प्रवर्तन निदेशालय के इस दावे कि उसके समय पर हस्तक्षेप से भूमि के अवैध अधिग्रहण को रोका गया, को अदालत ने संदिग्ध माना, क्योंकि आरोपों के अनुसार भूमि पहले से ही 2010 से ही याचिकाकर्ता के कब्जे में थी। भानु प्रताप प्रसाद के बयान कई मौकों पर दर्ज किए गए और ऐसे बयानों का विस्तृत विवरण दिए बिना, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बरगाइन अंचल अधिकारी मनोज कुमार के मौखिक निर्देश पर उन्होंने 8.86 एकड़ भूमि की जांच की थी और उन्होंने तथा अंचल अमीन ने स्वीकार किया कि उन्हें पता चला था कि भूमि वर्तमान याचिकाकर्ता की है।

भानु प्रताप प्रसाद के बयान से स्पष्ट है कि सरकारी रिकॉर्ड की जालसाजी और हेरफेर में उनकी संलिप्तता व्यापक थी और केवल वर्तमान मामले की 8.86 एकड़ भूमि तक सीमित नहीं थी। अदालत ने कहा कि सोरेन का बयान 8.86 एकड़ भूमि के अधिग्रहण और कब्जे के आरोपों का पूरी तरह से खंडन करता है। उन्होंने भानु प्रताप प्रसाद से कोई परिचय होने से भी इनकार किया। उन्होंने भानु प्रताप प्रसाद के मोबाइल से बरामद भूमि के समूह की छवि के बारे में किसी भी जानकारी से इनकार किया।

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