कर्मचारियों की बड़ी खबर : यूपीएस पेंशन स्कीम कैसे NPS और OPS से अलग है, एक्सपर्ट से जानिये किस पेंशन योजना में कर्मचारियों को है ज्यादा फायदा

By :  Aditya
Update: 2024-08-25 15:27 GMT

PENSHION NEWS। नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) में सुधारों की लंबे समय से मांग चल रही है। केंद्र सरकार ने यूनिफ़ाइड पेंशन स्कीम यानी यूपीएस योजना को मंज़ूरी दे दी है। अब राज्यों ने भी इसे लागू करना शुरू कर दिया है। महाराष्ट्र कैबिनेट ने इस पर मुहर लगायी है।

नयी पेंशन स्कीम यूपीएस के बारे में मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि यह योजना अगले साल एक अप्रैल से लागू होगी और इसका फ़ायदा केंद्र सरकार के 23 लाख कर्मचारियों को मिलेगा।

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बीते कुछ सालों से सरकारी कर्मचारी ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली की मांग करते रहे हैं और कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में विपक्षी दलों ने इसे मुद्दा भी बनाया था.विपक्ष शासित कुछ राज्यों में ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल भी किया गया, जिनमें राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पंजाब शामिल हैं।

यूपीएस, एनपीएस से किन मायनों में अलग है?

जब 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) की जगह न्यू पेंशन सिस्टम (एनपीएस) लेकर आई तो इसमें निश्चित पेंशन के प्रावधान को हटा दिया गया. इसके साथ ही इसमें कर्मचारियों का अंशदान अनिवार्य कर दिया गया, इसमें कर्मचारी और सरकार के लिए समान रूप से 10 प्रतिशत का अंशदान करने का प्रावधान बनाया गया.

साल 2019 में इसमें सरकारी अंशदान को बेसिक सैलरी और डीए का 14 प्रतिशत कर दिया गया.नए प्रावधान के अनुसार रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी जो कुल राशि बनी, उसका 60 प्रतिशत निकाल सकते हैं. बाकी 40 प्रतिशत को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और निजी कंपनियों की ओर प्रमोट किए गए पेंशन फ़ंड मैनेजर्स की विभिन्न स्कीमों में लगाना कर्मचारी के लिए अनिवार्य बना दिया गया.

इन कंपनियों की ओर से पेश की गई स्कीमों का 'निम्नतम' से 'उच्चतम' जोख़िम के आधार पर चुनाव किया जा सकता है.लेकिन सरकारी कर्मचारी यूनियनों का कहना है कि जब एनपीएस को लागू किया गया तो इसे ओपीएस से बेहतर बताया गया था, लेकिन 2004 के बाद भर्ती होने वाले जो लोग रियाटर हो रहे हैं उन्हें बहुत मामूली पेंशन मिल रही है.

इसके अलावा कर्मचारियों को अपना अंशदान भी देना पड़ रहा है, जबकि ओपीएस में पेंशन सरकार की ओर से मुहैया कराई गई सामाजिक सुरक्षा योजना पर पूरी तरह निर्भर थी.कर्मचारियों का कहना है कि जो नया यूपीएस लाया गया है उसमें कर्मचारी के अपने अंशदान को निकालने को लेकर स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है.

हालांकि यूपीस में ग्रैच्युटी के अलावा नौकरी छोड़ने पर एकमुश्त रक़म दी जाएगी. इसकी गणना कर्मचारियों के हर छह महीने की सेवा पर मूल वेतन और महंगाई भत्ते का दसवां हिस्से के रूप में होगी.

शनिवार को यूनिफ़ाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) की जानकारी देते हुए इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया, "प्रधानमंत्री मोदी ने पेंशन से जुड़े मामलों पर डॉ. सोमनाथन (जो उस वक्त फाइनेंस सेक्रेटरी थे) के नेतृत्व में एक कमिटी बनाई थी.


"उन्होंने कहा, "देशभर के लेबर संगठनों से बातचीत करने और दुनिया के और देशों में मौजूद सिस्टम को समझने के बाद कमिटी ने यूनिफ़ाइड पेंशन स्कीम की सिफ़ारिश की, जिसे सरकार ने मंज़ूर कर लिया."

लेकिन कई यूनियन नेताओं ने उनके इस दावे को झूठा बताया है. उनका कहना है कि सरकार ने यूपीएस को लेकर उनके साथ कोई बातचीत नहीं की.नेशनल मूवमेंट फ़ॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने सवाल किया है कि "कमिटी की सिफ़ारिश कब पेश हुई और कब इस पर विमर्श हुआ, ये किसी को पता नहीं. कमिटी की रिपोर्ट क्या है ये भी किसी को नहीं पता."

उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, "सभी जानते हैं कि हम लोग पूरे देश में ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली का आंदोलन चला रहे हैं, लेकिन सरकार ने यूपीएस लाने से पहले हमसे बात करना उचित नहीं समझा."वो कहते हैं, "मैंने प्रधानमंत्री मोदी को चार चिट्ठियां लिखी थीं, लेकिन किसी का कोई जवाब नहीं मिला. सरकार का दावा है कि यूपीएस, ओपीएस जैसा ही है, ऐसा है तो ओपीएस को ही लागू करने में क्या दिक्कत है?"

विजय कुमार बंधु ने कहा, "यूपीएस में कहा जा रहा है कि अंतिम सेवा वर्ष की बेसिक सैलरी के औसत का आधा पेंशन के रूप में दिया जाएगा. इसके अलावा एनपीएस के तहत जो कर्मचारियों का 10 प्रतिशत अंशदान होगा वो नहीं मिलेगा.


इसका मतलब कर्मचारी को न तो ओपीएस मिल पाया, न ही वो एनपीएस में रहा, वो तो अधर में लटक गया."हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि कर्मचारी एनपीएस और यूपीएस में विकल्प चुन सकते हैं.

विजय कुमार बंधु ने यूपीएस में नौकरी की 25 साल की समय सीमा को लेकर कहा, "यूपीएस में फुल पेंशन के लिए 25 साल की सीमा तय कर दी गई है. अर्द्धसैनिक बल के कर्मचारी 20 साल में रिटायर हो जाते हैं. यानी वो इस स्कीम से बाहर हो गए.

ऐसे अन्य कई क्षेत्र हैं. इसलिए यूपीएस एक घाटे का सौदा है, सिर्फ नाम बदल दिया गया है."वहीं नेशनल मिशन फ़ॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (भारत) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंजीत सिंह पटेल ने बीबीसी हिंदी से कहा, "एनपीएस में दो समस्याएं थीं, पहला, सेवा के दौरान कर्मचारी को अपने पैसे पर अधिकार नहीं था, दूसरा, रिटायरमेंट पर उसे निश्चित प्रतिशत के तौर पर पेंशन की गारंटी नहीं थी और डीए भी शामिल नहीं था."

"लेकिन एनपीएस में एक फायदा था कि कर्मचारी का जमा धन उसे या उसके परिवार को मिल जाता था और एक निश्चित हिस्सा शेयर मार्केट में निवेश हो जाता था. वो पैसा सरकार को नहीं जाता था."उन्होंने कहा, "हमारी मांग थी कि कर्मचारियों का पैसा उसे वापस कर दिया जाए और सरकार जो अंशदान करती है उसे वो वापस ले ले और उसके एवज़ में पुरानी वाली पेंशन के बराबर पेंशन दे दे."

वो कहते हैं, "यूपीएस तो एनपीएस से भी बुरा हो गया. सबसे बड़ी बात है कि अभी के एनपीएस में नियम है कि अगर सेवा के दौरान कर्मचारी की मौत हो जाती है तो उसके परिजन को पुरानी पेंशन स्कीम के तहत सैलरी का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलता है. लेकिन यूपीएस में तो ये भी प्रावधान नहीं है."



एनपीएस में कर्मचारियों की बचत का एक हिस्सा शेयर मार्केट में लगाए जाने का प्रावधान बनाया गया. यानी शेयर मार्केट के उतार-चढ़ाव के आधार पर जो रिटर्न मिलेगा उसी अनुपात में पेंशन बनेगी. यह फ़िक्स भी हो सकती है और 'परिवर्तनीय' भी."

जिन लोगों ने एनपीएस को चुना था, हाल के सालों में वे रियाटर होने लगे हैं और उन्हें पेंशन मिलना शुरू हो गई है."इन लोगों की शिकायत है कि उनकी पेंशन किसी महीने 100 रुपये होती है, कभी 120 रुपये होती है, ऐसे में वो अपनी ज़िंदगी कैसे बिताएंगे."

विजय कुमार बंधु ने भी एनपीएस के तहत मामूली पेंशन मिलने का मुद्दा उठाया, "बनारस में एक कॉलेज के प्रिंसिपल थे. जब वो रिटायर हुए उनकी सैलरी क़रीब डेढ़ लाख थी और जब पेंशन आना शुरू हुई तो वो क़रीब 4,044 रुपये थी. उनके सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया.


"यही वजह है कि कर्मचारी इसे रद्द करने और ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल करने की मांग कर रहे हैं.देश में सरकारी कर्मचारियों की अच्छी ख़ासी संख्या है और वो एक बड़ा वोट बैंक भी है, जो लगातार सरकार पर दबाव बनाए हुए है.

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