एक महीने में 19 करोड़ रुपये का चढ़ावा, 320 ग्राम सोना और 95 किलो चांदी भी भक्तों ने की भेंट, इस मंदिर में भक्तों ने कर दिया भगवान को मालामाल, जानिये कौन हैं वो

By :  Aditya
Update: 2024-09-08 14:46 GMT

Krishnadham Sanwaliya Seth of Mewar: त्योंहारी सीजन में मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। इधर मंदिरों में जमकर चढ़ावा हो रहा है। कृष्णाधाम सांवलिया सेठ में एक ही महीने में 19 करोड़ से ज्यादा कैश का चढ़ावा आया है। वहीं सोना चांदी का भी खूब चढ़ावा आया है।

हालांकि अभी भी चिल्लर की गिनती बाकी है। मेवाड़ के कृष्णधाम सांवलिया सेठ के भंडार से रिकॉर्ड 19 करोड़ 45 लाख रुपए निकल चुके हैं। इसके साथ ही 320 ग्राम 240 मिलीग्राम सोना और 95 किलो 689 ग्राम 500 मिलीग्राम चांदी भी भक्तों की ओर से चढ़ाई गई है। अभी तक 5 राउंड की गिनती हुई है। ये दान राशि अगस्त महीने की है।

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अगस्त महीने की दान राशि की 1 सितंबर को गिनती होनी थी। उस दिन मंदिर में भीड़ ज्यादा होने के कारण गिनती रोक दी गई थी।2 सितंबर को अमावस्या होने के कारण गिनती नहीं हो सकी। 3 सितंबर को पहला राउंड, 4 सितंबर को दूसरा, 5 सितंबर को तीसरा, 6 सितंबर को चौथा और 7 सितंबर को पांचवें राउंड की गिनती हुई।5 राउंड में कुल 19 करोड़ 45 लाख 43 हजार 400 रुपयों की गिनती हुई। इसमें भेंट कक्ष से ऑनलाइन और मनी ऑर्डर के जरिए मिले 3 करोड़ 52 लाख 55 हजार रुपए भी शामिल है।

सांवलिया जी के भंडार से 197 ग्राम सोना और 28 किलो 180 ग्राम चांदी मिली है। जबकि भेंट कक्ष से 123 ग्राम 240 मिलीग्राम सोना और 67 किलो 509 ग्राम 500 मिलीग्राम चांदी का चढ़ावा मिला है।अभी तक भक्तों ने 320 ग्राम 240 मिलीग्राम सोना और 95 किलो 689 ग्राम 500 मिलीग्राम चांदी चढ़ाई है।

ऐसे स्थापित हुए यहां सावंलिया सेठ

किवदंतियों के अनुसार औरंगजेब की मुगल सेना जब मंदिरों को तोड़ रही थी, तब मेवाड़ राज्य में पंहुचने पर मुगल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा। ऐसे में संत दयाराम ने प्रभु प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद कर दबा दिया।

फिर समय बीतने के साथ संत दयाराम का देवलोकगमन हो गया। मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नाम के ग्वाले को एक सपना आया कि भादसोड़ा-बागूंड के छापर में 4 मूर्तियां जमीन में दबी हुई है, जब उस जगह पर खुदाई की गई, तो भोलाराम का सपना सही निकला और वहां से एक जैसी 4 मूर्तियां प्रकट हुईं, जो सभी बहुत ही मनोहारी थी। देखते ही देखते ये खबर सब तरफ फैल गई और आस-पास के लोग प्राकट्य स्थल पर पंहुचने लगे।

फिर सर्वसम्मति से चार में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम ले जाई गई, भादसोड़ा में प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी भगत के निर्देशन में उदयपुर मेवाड़ राज-परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया। यह मंदिर सबसे पुराना मंदिर है इसलिए यह सांवलिया सेठ प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है।

6 दशक पूर्व था छोटा सा मंदिर

सांवलिया सेठ के बारे में यह मान्यता है कि नानी बाई का मायरा करने के लिए स्वयं श्री कृष्ण ने वह रूप धारण किया था। व्यापार जगत में उनकी ख्याति इतनी है कि लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं। लगभग 6 दशक पूर्व तक मंडफिया में सांवलिया सेठ का एक छोटा सा मंदिर हुआ करता था, जहां औसतन प्रतिमाह भंडार से ढाई सौ रूपयें की राशि निकलती थी, लेकिन ज्यों-ज्यों सांवलिया जी ख्याति बढती गई।


भंडार की राशि भी बढती चली गई। सांवलिया सेठ की महिमा बढने पर भंडार से अपेक्षा से कई अधिक धनराशि निकलने पर मंदिर विस्तार पर ध्यान दिया गया। जिसके फलस्वरूप पुराने मंदिर के स्थान पर अहमदाबाद के अक्षरधाम की तर्ज पर इस मंदिर का विस्तार किया गया।

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