चंपाई की हुंकार का क्या होगा असर? JMM-BJP की धुक-धुकी बढ़ाकर चंपाई दा क्या बन पायेंगे किंग मेकर, जानिये क्या कहता है कोल्हान का नंबर गेम

By :  Aditya
Update: 2024-08-21 17:38 GMT

रांची। कोल्हान के टाइगर कहे जाने वाले चंपाई सोरेन ने बगावत के कदम बढ़ा दिये हैं। आज का दिन निर्णायक होगा, कि झामुमो की तरफ से उन्हें मनाने की कोशिश होती है या फिर चंपाई अपना इस्तीफा भेजते हैं।

सार्वजनिक तौर पर खामोशी से मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ देने वाले चंपाई सोरेन ने जिस तरह से हुंकार भरी है, उसकी गूंज दूर दूर तक पहुंच रही है। चंपाई के कदम से झामुमो ही नहीं बीजेपी की भी धुकधुकी बढ़ी हुई है। इस बात में कोई शक नहीं कि चंपाई का प्रभाव झारखंड के करीब दो दर्जन सीटों पर है, जिसमें से 10 से 15 सीटों पर चंपाई काफी निर्णायक प्रभाव रखने का माद्दा रखते हैं।

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झारखंड जैसे छोटे राज्यों के लिए ये नंबर काफी मायने रखते हैं, वो भी तब जब जीत और हार के बीच सत्ता से फासला यही 10 सीटों के आसपास का ही रहता है।

ऐसे में जब चंपाई सोरेन ने नयी पार्टी बनाने के संकेत दे दिये हैं, तो झामुमो के साथ-साथ बीजेपी की भी बैचेनी बढ़नी लाजिमी है। अब तक बीजेपी चंपाई के सहारे कोल्हान की नैय्या पार लगाने का सपना देख रही थी, लेकिन अब चंपाई खुद ही मांझी बनकर अपनी नौका पार लगाने में जुटे हुए हैं।

जाहिर है चुनाव में यही समीकरण रहा, तो कई सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष दिखेगा और इसका कहीं ना कहीं नुकसान झामुमो को ही उठाना होगा।

मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से ही राजनीतिक गलियारे में यह बात छनकर सामने आ रही थी कि वे नाराज हैं और अलग रास्ता तय कर सकते हैं। हालांकि हेमंत सोरेन मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद ऐसा लग रहा था कि वे साथ बने रह सकते हैं।चंपाई सोरेन झारखंड के कोल्हान क्षेत्र से आते हैं, और उस इलाके के चौथे नेता हैं जो झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे.


अव्वल तो मधु कोड़ा भी कोल्हान क्षेत्र से आते हैं, जो एक दौर में अकेले दम पर झारखंड के मुख्यमंत्री बन गये थे - खास बात ये है झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और रघुबर दास भी कोल्हान क्षेत्र में ही राजनीति करते रहे हैं।

ध्यान देने वाली बात ये है कि चंपाई सोरेन को कोल्हान का शेर भी कहा जाता है. जब वो मुख्यमंत्री बने थे तो सोशल मीडिया पर उनके समर्थक उनको झारखंड का शेर कह कर संबोधित करने लगे थे - सबसे बड़ी बात ये है कि कोल्हान इलाके की करीब दर्जन भर विधानसभा सीटों पर चंपाई सोरेन का प्रभाव माना जाता है।


2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में इलाके की सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों को मिले वोट इस बात के सबूत भी हैं।अब अगर सवाल ये है कि आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव में कोल्हान के शेर का क्या प्रभाव होगा, तो इस बात का आकलन दो तरीके से किया जा सकता है.

एक, चंपाई सोरेन की बगावत से हेमंत सोरेन को होने वाले नुकसान से - और दूसरा, चंपाई सोरेन का रुख जिधर राजनीतिक दल की तरफ होता है, उसके हिसाब से।

कौन हैं चंपाई सोरेन


चम्पाई का जन्म सरायकेला-खरसावां जिले के जिलिंगगोड़ा गांव में हुआ. कम उम्र में ही अलग झारखंड के लिए आंदोलन में शामिल हो गए थे. 1970 के दशक में जब इस आंदोलन ने गति पकड़ी तो 1973 में JMM का गठन हुआ. चम्पाई सोरेन को उनके समर्थक ‘कोल्हान का टाइगर’ कहते हैं.


1990 के दशक में एक बार उन्होंने जमशेदपुर में टाटा स्टील के गेट पर असंगठित मजदूरों की मांगों को आगे बढ़ाने के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया था. 1993 में उनके खिलाफ विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज हुआ था. ये मामला रेलवे की संपत्ति को नष्ट करने से संबंधित है.2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में सरायकेला सीट से चम्पाई ने BJP के गणेश महाली को हराया था. उन्हें 15 हजार 667 वोटों से जीत मिली थी.


2014 में भी उन्होंने महाली को हराया. इस बार जीत का अंतर मात्र 1115 वोटों का था. उससे पहले 2009 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने BJP के लक्ष्मण टुडू को 3246 वोटों से हराया था. 2005 में भी उन्होंने टुडू को हराया था और इस बार जीत का अंतर मात्र 882 वोट था. साल 2000 के विधानसभा चुनाव में चम्पाई को BJP के अनंत राम टुडू ने 8783 वोटों से हरा दिया था. झारखंड साल 2000 में बिहार से अलग हुआ था. इसके पहले साल 1995 में और 1991 के उपचुनाव में भी चम्पाई को जीत मिली थी.

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